Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 167
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ सूरिदेव का स्वर्गवास - क्रमशः आयुष्य पूर्ण कर के वे मुक्त हो जाएंगे। अर्थात् राजन्! तुम्हारी मुक्ति तीसरे भव में होगी। 'मैं तीसरे भव में मुक्ति को प्राप्त करूँगा', यह बात सुनकर राजा को अनहद आनन्द हुआ। उसका हर्षोल्लास निरवधि होकर उछल रहा था। गुरुदेव के चरणों में पुनः-पुनः वंदना करके वे राजमहल पर गये। रात की बेला थी। नीरव शान्ति से वातावरण सोया हुआ था। आज कुमारपाल ने गुरुदेव के चरणों में ही रात बिताने का निश्चय किया था। कुमारपाल ने गुरुदेव से कहा : 'प्रभो, अब मैं वृद्ध हो गया हूँ। मुझे लगता है...कि अब मैं ज्यादा नहीं जिऊँगा। गुरुदेव मेरे पास सब कुछ है... एक पुत्र के अलावा। इसलिए स्वाभाविक ही मुझे चिन्ता बनी रहती है कि मेरे पश्चात उत्तराधिकारी कौन होगा? यदि आप कुछ निर्णयात्मक सूचन करें तो उसे राज्य सौंप कर... मैं जिन्दगी के अन्तिम दिनों समता रस में निमग्न रहूँ| आपके श्री चरणों में बैठकर शेष जीवन पूर्ण करूँ... यही मेरी हार्दिक इच्छा है।' नजदीक में ही बालचन्द्र मुनि सोये हुए थे। वे स्वभाव से कुछ तिकड़मबाज और इधर का उधर करनेवाले थे। सोने का ढोंग करते हुए वे राजा-गुरुदेव का वार्तालाप ध्यान से सुनने लगे। राजा के उत्तराधिकारी का मामला सुनकर वे चौकन्ने होकर वार्तालाप का एक-एक शब्द सुनने लगे। गुरुदेव ने पूछा : 'राजन्, तुम्हारी भावना उत्तम है। शेष जीवन शान्ति-समता से गुजारने की और राज्य उत्तराधिकारी को सौंप देने की बात मुझे भी अच्छी लगी। परन्तु क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारा राज्य सम्हाल सके वैसा पुरुष तुम्हारे आसपास है कौन?' राजा ने कहा : 'एक है, मेरा भतीजा अजयपाल और दूसरा है मेरा भानजा प्रतापमल्ल!' गुरुदेव उन दोनों कुमारों को जानते थे। कुछ पल सोचकर उन्होंने कहा : 'राजन्, अजयपाल के विचार अच्छे नहीं हैं। उसे धर्म जरा भी पसन्द नहीं है। धर्मस्थान उसे अच्छे नहीं लगते हैं।' यदि उसे राज्य सत्ता मिलेगी तो वह उन्मत्त बनेगा और पहला काम वह धर्मस्थानों को ध्वस्त करने का करेगा! For Private And Personal Use Only

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