Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 163
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १५३ आचार्यदेव ने अपने रुकने की जगह का निर्देश दिया। नरवीर प्रतिदिन आचार्यदेव के पास जाने लगा। 'एक दिन आढर सेठ ने नरवीर से पूछा : 'नरवीर, कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ... तू बाहर जाता है... देर तक बाहर रहता है... कहाँ जाता है, भाई?' 'मेरे उपकारी सेठ! मैं प्रतिदिन मेरे उपकारक गुरुदेव आचार्य श्री यशोभद्र सूरिजी के पास जाता हूँ... उनके चरणों में बैठकर उनके अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनना मुझे बड़ा अच्छा लगता है।' ___ आढर सेठ को बड़ी खुशी हुई। उन्होंने नरवीर से कहा : 'मैं भी तेरे साथ तेरे गुरु के दर्शन करने के लिए आऊँगा।' आढ़र सेठ और नरवीर दोनों गुरुदेव के पास गये । आचार्य श्री की वाणी सुनकर आढ़र सेठ भाव-विभोर हो उठे। फिर तो प्रतिदिन का यह कार्यक्रम हो गया। आढ़र श्रेष्ठी ने बारह व्रतमय गृहस्थ धर्म अंगीकार किया। आढ़र श्रेष्ठी ने एक भव्य आलीशान जिनमंदिर का निर्माण किया । यशोभद्रसूरिजी के पावन कर कमलों द्वारा भगवान महावीरस्वामी की सुन्दर नयनरम्य प्रतिमा प्रतिष्ठापित की। भव्य उत्सव रचाया। आचार्यदेवश्री को विहार कर के अन्यत्र जाना था पर आढ़र सेठ के अति आग्रह से उन्होंने एकशिला नगरी में ही चातुर्मास बिताने का निर्णय किया। चातुर्मास में जैसे जोरशोर से बारिश बरसती है... वैसे आचार्य भगवंत की उपदेश वाणी बरसने लगी। आढर सेठ का दिल नाच उठता है। नरवीर का मन बल्लियों उछलता है। सेठ और नौकर दोनों साथ ही रोज़ाना परमात्मा का पूजन करते हैं। सेठ और नौकर रोज़ाना गुरुदेव का उपदेश सुनते हैं। पर्युषण महापर्व का आगमन हुआ। सेठ के साथ नरवीर रोज़ाना मंदिर जाता है। सेठ अपने घर से लाई हुई पूजन सामग्री से पूजा करते हैं। एक दिन नरवीर का मन हुआ... अपनी कमाई के पैसों से प्रभु की पूजा करने का । उस के पास पाँच कौड़ियाँ थी। For Private And Personal Use Only

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