Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 158
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गत जनम की बात १४८ GOAN २५. गत जनम की बात की एक दिन कुमारपाल ने गुरुदेव से प्रश्न किया : 'गुरुदेव, इस वर्तमान समय में आप ही सर्वज्ञ हो | मेरे प्रश्नों का समाधान मुझे चाहिए। आप देने की महती कृपा करें।' 'पूछो राजन्! मेरे ज्ञान प्रकाश में तुम्हारे प्रश्न का प्रत्युत्तर यदि मुझे मिलेगा तो मैं अवश्य उत्तर दूंगा। तुम्हारे मन का समाधान करने की कोशिश करूँगा।' 'प्रभो, पूर्व जन्म में मैं कौन था? - सिद्धराज ने मुझे इतना दुःख क्यों दिया?' - आप एवं महामंत्री उदयन का मेरे उपर इतना प्यार क्यों है? इतना स्नेह किसलिए? विगत जन्म के किसी विशिष्ट संबन्ध के बगैर इस तरह की जानलेवा दुश्मनी या इतनी चाहतभरी मित्रता का होना संभव नहीं है।' आचार्यदेव ने कहा : 'कुमारपाल, तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए मुझे किसी देव-देवी का सहारा लेना पड़ेगा। उनसे जवाब प्राप्त करके तुम्हें बताऊँगा।' गुरुदेव को वंदना करके कुमारपाल अपने महल पर गये। गुरुदेव ने एक साधु के साथ सिद्धपुर की ओर प्रयाण किया। सिद्धपुर की सीमा में सरस्वती नदी के शान्त नीर बहते थे। किनारे पर एक घटादार पेड़ था। उसके नीचे शुद्ध जमीन पर प्रमार्जन करके मुनि ने आसन बिछाया। गुरुदेव ने आसन पर बैठकर मंत्रस्नान करके सूरिमंत्र की आराधना प्रारम्भ की। तीन दिन तक उपवास और आराधना चलती रही। सेवा में रहे हुए मुनि ने उत्तर साधक बनकर, अप्रमत्त रहते हुए गुरुदेव की सहायता की। आराधना पूर्ण हुई। त्रिभुवनस्वामिनी देवी प्रगट हुई। उस ने ध्यानलीन गुरुदेव से पूछा : 'सूरिदेव, मुझे क्यों याद किया?' आचार्यदेव ने कहा : 'हे देवी, आपके नेत्र दिव्य हैं। आप भूतकाल और भविष्यकाल की बातें For Private And Personal Use Only

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