________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धर्मश्रद्धा के चमत्कार
१२६
२१. धर्मश्रद्धा के चमत्कार र
- गुरुदेव के हृदय में जिनेश्वर देव बिराजमान थे। - गुरुदेव की जिह्वा पर सरस्वती का निवास था। - गुरुदेव ने अनगिनत ग्रन्थों का सर्जन किया था। - कई तरह के विषयों पर उन्होंने ग्रन्थ लिखे थे।
गुरुदेव की प्रेरणा से राजा कुमारपाल ने भी संस्कृत भाषा के व्याकरण का अध्ययन किया। संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व प्राप्त किया। कुमारपाल ने स्वयं संस्कृत भाषा में काव्यों की रचना की। इतना ही नहीं, गुरूदेव जिस ग्रन्थ का सर्जन करते थे... कुमारपाल सात सौं आलेखको के पास उस ग्रन्थ की सात सौ प्रतियाँ लिखवाकर तैयार करवाते थे। - उन्होंने सोने की स्याही से ग्रन्थ लिखवाये। - चाँदी की स्याही से ग्रन्थ लिखवाये । - और काली स्याही से भी ग्रन्थ लिखवाये ।
ग्रन्थ लिखवाने के लिए विशेष तौर पर कश्मीर से कागज मंगवाया जाता था। उन पन्नों को प्रमाणोपेत ढंग से काटा जाता... फिर उस पर चौतरफ सुन्दर चित्रकाम-कलात्मक रेखांकन किया जाता।
आलेखकों के अक्षर यानी मोती के दाने! गुरुदेव ने हजारों नहीं... लाखों नहीं... करोड़ो श्लोकों की रचना की। और कुमारपाल ने उन सभी श्लोकों को सुन्दर मजबूत कागजों पर लिखवा
लिये।
कुमारपाल रोज़ाना सबेरे गुरुदेव की चरण वंदना करने के लिए उपाश्रय में जाते थे। उस समय उन्हें बड़ा ही अद्भुत नज़ारा देखने के लिए मिलता था। गुरुदेव अस्खलित रूप में तनिक भी रुकावट या व्यवधान के बिना मधुर स्वर में श्लोक की रचना करते और बोलते रहते थे। गुरुदेव के विद्वान और विश्रुत शिष्य उन श्लोकों को कागज पर उतारते। इधर आलेखक लोग उन श्लोकों को सुन्दर... स्वच्छ अक्षरों में कश्मीरी तालपत्रीय कागज पर लिखते रहते थे।
For Private And Personal Use Only