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अपूर्व साधर्मिक उद्धार
१३० _ 'तू बगीचे में जा | उन तालपत्रों को यहाँ पर ले आ । लाकर इन आलेखकों को दे।' माली प्रसन्न होता हुआ गया। गुरुदेव ने सस्मित पूछा... क्या बात है यह?' कुमारपाल ने वृक्षपूजा की बात की। सुनकर गुरुदेव, मुनिवर, आलेखक, उपस्थित स्त्री-पुरूष सभी विस्मित हो उठे।
गुरुदेव ने कहा : 'कुमारपाल, तुम्हारी धर्मश्रद्धा पूर्वक रचे हुए चमत्कार को मुझे प्रत्यक्ष देखना है, चलो, हम तुम्हारे उस बगीचे में चलेंगे।'
सभी बाग में पहुंचे। जिस तालवृक्ष की राजा ने पूजा की थी। वह तालवृक्ष देखा... अन्य तालवृक्ष देखे। सभी तालवृक्ष एकदम खिल उठे थे। नवपल्लवित हो उठे थे।
ज्यों-ज्यों यह बात पाटन में फैलती गई... त्यों-त्यों लोगों के झुंड बाग में आने लगे, तालवृक्षों को देखने के लिए | चमत्कार को प्रत्यक्ष देखकर सभी राजा के गुण गाने लगे।
गुरुदेव ने उपस्थित समूह को संबोधित करते हुए कहा : 'महानुभाव, यह आर्हत् धर्म का दिव्य प्रभाव है। सूखे हुए... मुरझाये हुए तालवृक्ष नवपल्लवित हो उठे। इसलिए हे भावुक भक्तजनो! तुम्हें भी आर्हत् धर्म का अनुसरण करना चाहिए।' - कई लोगों ने जैन धर्म को स्वीकार किया। - महल पर जाकर राजा कुमारपाल ने उपवास का पारणा किया।
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