Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 154
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाँच प्रसंग १४४ पुत्र चंगदेव ने दीक्षा ली। पति चाचग श्रेष्ठी का देहावसान हुआ। पाहिनी श्राविका ने दीक्षा ले ली थी। माता पाहिनी साध्वी अपने ज्ञान-ध्यान में लीन थी। अपने कोखजाए हेमचन्द्रसूरि का अपूर्वज्ञान, अद्भुत योगसिद्धि और महान् शासन प्रभावना देखकर माता साध्वी का हृदय अपूर्व प्रसन्नता का अनुभव करता था। आचार्यदेव भी माता साध्वीजी की पूरी सार सम्हाल रखते थे। उनके प्रति भक्तिभाव करते थे। साध्वी पाहिनी मृत्यु शय्या पर सोयी हुई थी। साध्वीवृंद उन्हें अन्तिम आराधना करवा रहा था। गुरुदेव को समाचार मिले। वे पाटन में ही बिराजमान थे। अविलम्ब वे माता साध्वीजी के पास पहुंचे। माँ ने बेटे की ओर देखा। बेटे ने अनहद भक्ति से प्रेरित होकर कहा : 'माताजी, मैं आपको एक करोड़ नवकार का पुण्य दान देता हूँ। आपके लिए एक करोड़ नवकार का मैं जाप करूँगा। आप अनुमोदना करें।' । आचार्यदेव ने पुण्यदान देकर, स्वयं साध्वी माता को श्री नवकार महामंत्र सुनाने लगे।' साध्वी पाहिनी ने समाधि मृत्यु का वरण किया । श्रावक संघ ने श्मशान यात्रा की तैयारियाँ की। साध्वीजी के मृतदेह को श्मशान में ले जाने के लिए सुन्दर और कीमती पालकी बनाई गयी। पालकी एक जगह पर रखकर श्रावक समुदाय अन्य तैयारियों में जुट गया । इधर कुछ जैनविरोधी लोगों ने उस पालकी को तोड़ डाला। समाचार पहुँचे हेमचन्द्रसूरि के पास। यह सुनकर हेमचन्द्रसूरि को काफी गुस्सा आया । वे स्वयं जहाँ पर मृतदेह था, वहाँ पहुँच गये। श्रावकों से कहा : 'अब तुम्हे तनिक भी डरने की आवश्यकता नहीं है। नई पालकी में माता के मृतदेह को बिराजमान करो | मैं यहीं पर हूँ... देखता हूँ कौन आता है विघ्न डालने के लिए। साध्वी पाहिनी की भव्य श्मशान यात्रा निकली। पाटन के हजारों स्त्रीपुरुष श्मशान-यात्रा में शामिल हुए। For Private And Personal Use Only

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