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बादशाह का अपहरण
१२५ स्नान-भोजन वगैरह दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर कुमारपाल ने मुहम्मद को आचार्य गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी का परिचय दिया। मुहम्मद तो यह सब सुनकर दंग रह गया। ___ 'गूर्जरेश्वर, जिस मुल्क में ऐसे खुदा के नूर से भरे संत रहते हों... और तुम्हारे जैसे शेर की तरह पराक्रमी राजा राज्य करते हों... उस देश की सुख, संपत्ति और धर्मभावना वृद्धिगत होगी ही। जिस देश में कोई आदमी बालों की जूं तक को नहीं मार सकता हो... उस देश में राजा की आज्ञा का कितना अद्भुत पालन होता है। और तुम से सम्राटराजा, गुरुदेव के चरणों में बैठकर प्रतिदिन उपदेश सुनते हैं, दीन ए जैन की बातें सुनते हो, गुरु की एक-एक बात मानते हो, वैसा तो गुजरात में ही देखा ।'
मुहम्मद ने कुमारपाल के साथ काफी बातें कीं। धर्म की बातें कीं और अपनी राजनीति की बातें कीं। तीन दिन मुहम्मद ने गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी से मुलाकात की। और जैन धर्म का उपदेश सुना। ___ जाते वक्त मुहम्मद की आँखों में नमी थी। कुमारपाल के अपनत्व से उसका पत्थर दिल मोम की तरह पिघल गया था। उसने गुरुदेव और गुर्जरेश्वर से कहा : गुरुदेव, मैं अपने राज्य में प्रतिवर्ष छह महीने तक जीवहिंसा नहीं होने दूंगा। आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।' ___ कुमारपाल ने मुहम्मद को सुन्दर रथ उपहार में दिया। भावभरी बिदाई दी।
साथ में पच्चीस बुद्धिशाली और बलिष्ठ राजपुरुषों को भेजा। उनसे कहा : 'तुम बादशाह के साथ उसके मुल्क तक जाना । वहाँ कुछ दिन रहकर वापस लौटना।'
पाटन में चारों ओर मुहम्मद की चर्चा ही थी लोगों की जबान पर! मुहम्मद के पलंग को देखने के लिए लोगों के झुंड आने लगे।
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