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गुरुदेव की निस्पृहता
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६. गुरुदेव की नि:स्पृहता
गुजरात के राजा सिद्धराज को हर बात का सुख था। दुःख था तो सिर्फ एक ही बात का... उसे कोई सन्तान नहीं थी। नहीं था पुत्र, नहीं थी पुत्री। ___ कभी... आराम के क्षणों में राजा को यह दुःख काफी सताता था। राजा अपने मन की पीड़ा रानी के सामने व्यक्त करता। रानी उसे ढाढ़स बंधाती, आश्वासन देती और इस तरह बरसों गुजर गये ।
एक दिन हताशा के गहरे सागर में डूबे हुए राजा ने रानी से कहा :
'अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ। फिर भी मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई! मेरा इतना विशाल और समृद्ध साम्राज्य होने पर भी यह सब निरर्थक प्रतीत होता है, बिना पुत्र के!
- सुन्दर कमल के फूलों से रहित सरोवर शोभा नहीं देता! - सूर्य की रोशनी के बिना दिन अच्छा नहीं दिखता! - दान के बगैर वैभव का अर्थ ही क्या है? - मधुर वाणी के बिना गौरव का माइना ही क्या है? - समृद्धि के बिना घर की शोभा नहीं रहती... वैसे ही -
पुत्र के बिना कुल की शोभा नहीं होती! संसार में सारभूत वस्तुएँ दो ही हैं : एक पैसा और दूसरा पुत्र! इन दो के बिना जीवन व्यर्थ है, फिजूल है! पुत्र बिना का कुल, संध्या के रंगों की भाँति एवं बिजली की चमक-दमक की भाँति शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।'
रानी ने मधुर शब्दों में आश्वासन देते हुए कहा : 'स्वामिन्, जो बात भाग्य के अधीन है... उसके लिए अफसोस करने से क्या मतलब? हमारे ऊपर देवों की कृपा नहीं है! अपने दिल को पुत्र-सुख का आनन्द नहीं मिलना होगा... पूर्वजन्म में हमने पुण्यकर्म नहीं किये होंगे, इसलिए इस जन्म में हम पुण्योपार्जन के लिए कुछ करें।
- गुरुजनों के प्रति ज्यादा भक्तिभाव बनाये रखें। - परमात्मा की दिल लगाकर पूजा करें। - इच्छित फल को देनेवाली तीर्थयात्रा करें!
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