Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राजा का रोग मिटाया लगता है...हालाँकि ये देव-देवी निम्न कक्षा के होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७ ये पुजारी जो माँग कर रहे हैं... वह तो इनके स्वार्थ के लिए सारा खेल रचा रहे हैं। देवीपूजा के बहाने मांसभक्षण की इनकी पापलीला ढँकी रहती है ! इसलिए तुम पशुओं को देने की तो हामी भर लो... पर साथ ही सूचना कर देना कि इन सभी पशुओं को देवी के मंदिर के परिसर में रखना है ... फिर मंदिर बंद कर देना। मंदिर के बाहर चौकीदार को बिठा देना... सारी रात पशु मंदिर में रहेंगे। यदि देवी को स्वयं को बलिदान लेना होगा तो वह ले लेगी ! पर देखना...सबेरे सभी पशु कुशल मिलेंगे। पशुओं को वापस लेकर उनकी जितनी क़ीमत होती हो उतनी क़ीमत की खाद्य सामग्री - नैवेद्य वगैरह देवी को अर्पण करवा देना. ' राजा समझ गये । उन्होंने उसी तरह किया । सबेरे सभी पशु मंदिर के प्रांगण में नाचते-कूदते हुए दिखायी दिये । राजा का मन प्रसन्नता से पुलकित हुआ ! उन्होंने पूजारियों को बुलाकर फटकारते हुए कहा : 'देखो...अपनी खुली आँखों से! सारे पशु जिन्दा हैं या नहीं ? देवी को बलिदान चाहिए था तो वह पशुओं की हत्या नहीं कर देती पर एक भी पशु मरा नहीं है... यह तो तुम्हारा ढकोसला है सब ! तुम्हें देवी को बलिदान देने के बहाने मांसाहार का मज़ा उड़ाना हैं पर ध्यान रखना... मैं कुमारपाल हूँ... मेरी समझ में सारी बात आ चुकी है... मैंने सर्वज्ञ के तत्त्वों को जाना है... ..तुम इस कदर मुझे ठग नहीं सकते! खबरदार... जो आज के बाद ऐसा कोई ढकोसला रचाया तो ! चले जाओ मेरी आँखों के आगे से... अपना काला मुँह लेकर कभी आना मत इधर ! राजा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। पुजारी लोग तो अपना-सा मुँह लटकाये वहाँ से चले गये । राजा ने अपने आदमियों से कहकर उन सभी पशुओं को बिकवा कर उसके पैसे का नैवेद्य खरीदवाया और देवी के समक्ष अर्पण कर दिया । For Private And Personal Use Only इस तरह नवरात्र में देवी पूजा का विधि संपन्न करके दसवें दिन, कुमारपाल अपने राजमहल के शयनगृह में परमात्मा के ध्यान में लीन थे तब एक भयानक

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