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राजा का रोग मिटाया
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१५. राजा का रोग मिटाया दमा
आदमी जब कोई अच्छा कार्य करने की प्रतिज्ञा लेता है तब किसी न किसी रूप में उसकी परीक्षा होती है... उसका इम्तिहान लिया जाता है। सत्वशील आदमी अडिग रहता है...सत्वहीन पुरुष डगमगा जाता है! एक दिन की बात है!
राजमहल में गुरुदेव श्रीहेमचन्द्रसूरि और राजा कुमारपाल तत्त्वचर्चा करते हुए बैठे थे। इतने में वहाँ पर देवी कंटकेश्वरी के मंदिर के पुजारी आये और दोनों को नमस्कार करके कहा :
'महाराजा, आप जानते है कि देवी कंटकेश्वरी आपकी गौत्रदेवी है। नवरात्र के दिनों में, अंतिम तीन दिन देवी को पशु बलिदान दिया जाता है और देवी की विशिष्ट पूजा की जाती है। __सप्तमी के दिन सात सौ बकरे और सात भैंसों का बलिदान दिया जाता
अष्टमी के दिन आठ सौ बकरे और आठ भैंसों का बलिदान दिया जाता
है।
नवमी के दिन नौ सौ बकरे एवं नौ भैंसों का बलि चढ़ाया जाता है।
इस तरह कुल २४०० बकरे और २४ भैंसों का बलिदान दिया जाता है। अतः इतने बकरे व भैंसे आज ही हमें देने की कृपा करें... ताकि देवीपूजा का कार्य अच्छी तरह संपन्न हो सके। यदि इस तरह बलिदान न दिया गया तो देवी कुपित होती है और अनर्थ हो सकता है!'
यों निवेदन करके पुजारी खड़े रहे। राजा ने गुरुदेव के सामने देखा और कान में कहा : 'इसका क्या जवाब दूं?' गुरुदेव ने कान में कहा : जिनेश्वर भगवंतों ने तो कहा है कि देव-देवी जीवहिंसा का पाप नहीं करते हैं | पर कुछ कुतूहलप्रिय देव-देवी इस तरह के तमाशे पसंद करते हैं...उनके समक्ष पशुओं की हत्या होती हो...खून के फव्वारे छूटते हो...यह उन्हें अच्छा
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