Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 129
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादशाह का अपहरण ११९ बादशाह का अपहरण पाटन जैन संघ की और राजा कुमारपाल की भावपूर्ण विनति को स्वीकार कर के गुरुदेव श्री हेमचन्द्रसूरिजी पाटन में चातुर्मास करने के लिए पधारे थे। आचार्यदेव ने पहले ही दिन के प्रवचन में कहा : 'चातुर्मास के दौरान श्रावकों को एक ही गाँव नगर में रहना चाहिए | चूँकि बारिश के दिनों में छोटे-बड़े जीव-जन्तु पैदा हो जाते हैं। घर में भी पैदा हो सकते हैं... बाहर रास्तों पर... गीली मिट्टी कीचड़ में तो काफी संभावना रहती है जन्तुओं के पैदा होने की। पैदल चल कर जाने से उन जीव जन्तुओं की हिंसा होने की शक्यता रहती है। तुम्हारे दिल में धर्म का स्थान हो तो... जीवदया का धर्म स्थापित हुआ हो तो चातुर्मास के दौरान मुसाफिरी नहीं करनी चाहिए।' यह उपदेश सुनकर राजा कुमारपाल ने खड़े होकर... दोनों हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर गुरुदेव से कहा : 'गुरुदेव, मुझे प्रतिज्ञा दीजिए | मैं चातुर्मास के दौरान पाटन से बाहर नहीं जाऊँगा। पाटन में भी मंदिर और उपाश्रय ही जाऊँगा। इसके अलावा कहीं भी घूमने-फिरने नहीं जाऊँगा।' - राजा ने प्रतिज्ञा ली। - प्रजाजनों ने भी प्रतिज्ञा ली। कुमारपाल की ऐसी महान् प्रतिज्ञा की प्रशंसा देश-विदेश में होने लगी। गाँव-गाँव और गली-गली में गुर्जरेश्वर की धर्मप्रियता के गीत गूंजने लगे। बात को पंख लग गये और बात जा पहुँची ईरान के मुल्क में। ईरान के बादशाह मुहम्मद की बाँछे खिल गई, यह बात सुनकर | कई बरसों से उनका मनसूबा था गुजरात पर आक्रमण करके वहाँ अपना सिक्का जमाने का | पर कोई मौका हाथ नहीं लग रहा था। कुमारपाल सिंह की तरह दहाड़ता हुआ गुजरात की रक्षा के लिए सन्नद्ध था। मुहम्मद ने सोचा : चातुर्मास के दिनों में गुजरात पर घावा बोल दूं... ये तो बड़ा ही सुनहरा मौका है। कुमारपाल स्वयं तो युद्ध करने के लिए आएगा नहीं, वह तो पाटन के बाहर भी निकलनेवाला नहीं। और राजा के बगैर की For Private And Personal Use Only

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