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जिनमंदिरों का निर्माण बैठा था। काफी थक चुका था। शरीर भी थका हुआ था। दीन-हीन हालत में भिखारी सा हो चुका था। अचानक मैनें एक नजारा देखा... मेरी आँखों में चमक कौंध उठी... मेरी थकान...मेरी उदासी...मायूसी सब दूर हो गये।
पेड़ के पास एक बिल था... उस बिल में से एक चूहा बाहर निकला... उसके मुँह में चाँदी का सिक्का था। उसने वह सिक्का एक जगह पर रखा। वापस बिल में गया... कुछ देर में दूसरा सिक्का लेकर बाहर आया। वह सिक्का भी पहले सिक्के के पास में रखा। वापस बिल में गया... सिक्का लेकर आया... यों उसने बत्तीस सिक्के बाहर लाये और वहाँ रखकर वह नाचने लगा।
मैने सोचा : 'यह चूहा इन सिक्कों का क्या करेगा? उसे ये सिक्के कुछ काम नहीं लगेंगे... जबकि मेरे इन भूखमरी के दिनों में ये सिक्के वरदान साबित हो जाएंगे। मेरी गरीबी ने मुझे उन सिक्कों को हथियाने के लिए उकसाया। मैने सोचा कि चूहा जब बिल में जाएगा तब मैं सिक्के ले लूँगा।'
इधर चूहा बिल में गया और मैनें सिक्के उठाकर अपनी कमर में बाँध लिये। __कुछ ही देर बाद चूहा बिल में से निकला... उसने सिक्के देखे नहीं। वह घबराया सा चारों ओर देखने लगा। पेड़ के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगा... जब उसे सिक्के दिखाई नहीं दिये तो पागल सा होकर एक पत्थर पर सिर पटक-पटक कर कलपने लगा। मैं देखता रहा और वह चूहा मर गया।
प्रभो, चूहे की मौत ने मेरे दिल को दहला दिया। मुझे लगा... यदि मैंने सिक्के नहीं लिये होते तो अच्छा रहता... पर वह तो दुले हुए दूध पर दुःखी होने जैसा था।
गुरुदेव, चूहे की हत्या के इस भयंकर पाप का मुझे प्रायश्चित्त दीजिए।' गुरुदेव ने कहा : 'कुमारपाल, जिस जगह पर चूहा मरा... उसी जगह पर एक भव्य जिनमंदिर का निर्माण करो। यही तुम्हारे लिए प्रायश्चित्त है।' ___ आज भी अरावली की पहाड़ियों की गोद में 'तारंगा' नामके तीर्थ में वह भव्य जिनालय खड़ा है। उसमें भगवान अजितनाथ की भव्य प्रतिमा बिराजमान है। नौ सौ वर्ष के पश्चात् भी वह मंदिर उस कथा को सुना रहा है। ___ गुजरात के महामंत्री थे उदयन मेहता। उनके एक पुत्र का नाम था वाग्भट्ट | वाग्भट्ट पराक्रमी थे... शूरवीर योद्धा थे और कुशल सेनापति थे।
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