Book Title: Kalikal Sarvagya
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 118
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डायनों को मात दी १०८ आचार्यदेव तो ध्यान में लीन थे.... परन्तु यशश्चन्द्र मुनि ने गर्जना करते हुए कहा : 'अरी दुष्टा देवी,.....तू मेरे गुरुदेव का अपमान करती है? मेरी ताकत का तुझे अंदाजा नहीं है क्या? मैं तुम्हें शांति से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ, इसका अर्थ तू मेरी कमजोरी मान रही है क्या? क्या तू हमें डरा-धमका रही है? तो अब देख ले मेरा भी चमत्कार ।' यशश्चन्द्र मुनि ने दोनों पैर चौड़े किये... दोनों हाथ कमर पर टिकाये और मुँह में से 'हूँ हूँ हूँ...' करते हुए भीषण सिंहनाद किया। पूरा मंदिर पत्ते की भाँति हिलने लगा। __दूसरा हूँकार किया और मंदिर में रही हई तमाम देवियाँ स्तंभित हो गई, जैसे कि चित्र में आलिखित हों। ___ मुनि ने तीसरा हँकार किया... और इसी के साथ सैंधवी देवी डर के मारे उछली। उछलकर सीधी आचार्यदेव के पैरों के पास गिरी। काँपती... थरथराती देवी दोनों हाथ जोड़कर दयार्द्र स्वर में याचना करने लगी... 'मैं आपके चरणों की दासी हूँ। आप जो कहो... जैसा कहो, वह सब करने के लिए तत्पर हूँ।' यशश्चन्द्र मुनि ने कहा : 'तेरी जिन देवियों ने आम्रभट्ट को सम्मोहित कर के परेशान कर रखा है, उन देवियों के पाश से आम्रभट्ट को मुक्त कर और सूरिदेव की सेवा कर ।' सैंधवी देवी बोली : 'मुनिराज, उन देवियों ने अपनी शक्ति के बल पर आम्रभट्ट के शरीर को भीतर से टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं। अब उन्हें छुड़वाने का क्या मतलब है? छुड़वाने के बाद भी आम्रभट्ट जिन्दा नहीं रहेंगे।' ___ मुनिराज ने दहाड़ मारी : 'यह तेरा नाटक है... तेरी चालाकी है। पर मैं तेरी चालाकी को भलीभाँति जानता हूँ| जब तक आम्रभट्ट तेरी देवियों के सिकंजे में से मुक्त नहीं होंगे, तब तक तू यहाँ से छूट नहीं सकती।' सैंधवी देवी घबरा उठी। जैसे कि वह लोहे की जंजीरों में जकड़ा गई हो। और कोई उसे भयानक आरी से छील रहा हो। वैसी घोर वेदना उसके अंगअंग में दहकने लगी। वह चीखने लगी। चित्कार करने लगी। इधर यशश्चन्द्र ने सिंहनाद किया। For Private And Personal Use Only

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