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'सिद्धहेम' व्याकरण की रचना मानसम्मान बढ़ने लगा। राजा का नैकट्य उन्हें प्राप्त होने लगा। इससे कुछ विद्वान पंडित उनसे जलने लगे। उन्होंने एकत्र होकर सोचा : हम राजा के गले एक बात उतार दें....कि 'हेमचन्द्राचार्य ने इतना बड़ा व्याकरण ग्रन्थ तो बनाया, परन्तु उस ग्रन्थ में प्रस्तावना या प्रशस्ति में कहीं भी आपका नाम या आपके पूर्वजों के नाम.... राजा मूलराज वगैरह का नामोल्लेख तक भी नहीं है। कितना गर्विष्ठ है वह जैनाचार्य!' यदि इस तरह कहेंगे तो कच्चे कान का राजा अवश्य जैनाचार्य के प्रति क्रोधित होगा, और उस ग्रन्थ को सरस्वती नदी में फिंकवा देगा!' सभी मिलकर गये राजा के पास।
राजा से जाकर सारी बात बढ़ा-बढ़ा कर कही। राजा ने बात सुनी। राजा ने कहा : 'ठीक है, मैं उनसे इस बारे में पूछूगा।'
इधर हेमचन्द्रसूरिजी को इस बात का पता लग गया था। उन्होंने शीघ्र ही राजा सिद्धराज और उसके पूर्वजों की प्रशस्ति कविता लिखकर उसी ग्रन्थ में जोड़ दी। जब राजा ने इस बारे में पूछा तो हेमचन्द्रसूरिजी ने ग्रन्थ खोलकर वे पंक्तियाँ पढ़कर सुना दीं।
राजा संतुष्ट भी हुआ, प्रसन्न भी। हेमचन्द्रसूरिजी द्वारा रचित वह 'सिद्धहेम व्याकरण' आज भी, संस्कृत भाषा सीखने वालों के लिए काफी सहायक है। कई लोग उसका अध्ययन करते हैं। विदेशों मे अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने तो इस ग्रन्थ का उच्चतम मूल्यांकन किया है। 'सिद्धहेम व्याकरण' ग्रन्थ अपने आप में अद्वितीय है! अनुपम है!
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