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काशीदेश में अहिंसा-प्रचार
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१४. काशीदेश में अहिंसा-प्रचार
राजा कुमारपाल के दिल में आचार्यदेव हेमचन्द्रसूरिजी के प्रति सुदृढ़ श्रद्धा स्थापित हो गई थी। वे सोचते हैं :
- यही मेरे देव! -- यही मेरे गुरु! - ये कहें वही मेरा धर्म!
आचार्यदेव ने भी राजा को सर्वप्रथम परमात्मा का स्वरूप समझाया। गुरु का स्वरूप समझाया और धर्म का स्वरूप बताया।
राजा का व्यक्तिगत जीवन शक्य इतना निष्पाप बनाया। उसे अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। राजा के जीवन में हिंसा का तनिक भी स्थान नहीं रहा! न मांसाहार... न शिकार... हर तरह की हिंसा का राजा ने परित्याग कर दिया था। । इसी तरह, दैनिक धर्मानुष्ठान में भी राजा प्रवृत्त होने लगा। रोज़ाना परमात्मा की पूजा करता है....
सामायिक में समत्व की साधना करता है...
पर्वतिथि के दिन पौषध ग्रहण करके आत्मा को पापरहित बनाने की प्रक्रिया जारी रखता है।
अनेक व्रत लिये राजा ने! अनेक नियम ग्रहण किये राजा ने!
गुरुदेव ने कुमारपाल को राज्य में हिंसा बन्द करवाने का उपदेश दिया। राजा को उपदेश अच्छा लगा। राजा ने गुजरात के तमाम शहर...नगर और गाँवों में ढिंढोरा पिटवा दिया :
'कोई भी आदमी यदि हिरन, बकरा, गाय, भैंस इत्यादि किसी भी जीव की हत्या करेगा वह राज्य का गुनहगार माना जाएगा। उसे कड़ी सजा दी जाएगी!
राजा ने पाटन में उद्घोषणा करवा के - कसाइयों के बूचड़खाने बन्द करवा दिये।
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