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गुरुदेवने जान बचायी !
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१०. गुरुदेव ने जान बचायी!
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कभी खाने को मिलता है...कभी भूखा रहना पड़ता है... कभी पानी पीने को मिलता है... कभी प्यासा ही भटकना पड़ता है... कभी सोने को आसरा मिलता है, तो कभी वह भी नसीब नहीं होता!
इस तरह भटकता हुआ कुमारपाल एक दिन खंभात के करीब पहुँच जाता है। सिद्धराज के सैनिकों से सतत बचता हुआ कुमारपाल खंभात के दरवाजे में प्रवेश करता है । छुपता-छुपाता वह धीरे-धीरे राजमार्ग पर चला जा रहा है। और एक भव्य जिनमंदिर के सामने चबूतरे पर आराम करने के लिए बैठता
है।
__ वहाँ उसे मालूम हुआ कि 'आचार्यदेव श्री हेमचन्द्रसूरिजी यहीं पर किसी उपाश्रय में रुके हुए हैं।' वह पूछता हुआ उपाश्रय में पहुँच गया।
जब कुमारपाल उपाश्रय में पहुंचा तब वहाँ पर गुरुदेव के पास कोई स्त्रीपुरुष नहीं थे। कुमारपाल आश्वस्त हुआ। उपाश्रय में प्रवेश करके उसने आचार्यदेव को वंदना की। आचार्यदेव ने कुमारपाल को पहचान लिया । 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया। कुमारपाल ने कहा :
'गुरुदेव, आप ज्ञानी हैं, भूत-भावि और वर्तमान-तीनों काल के ज्ञाता हैं! प्रभु! राजा के घर में जन्म लेने पर भी आज मैं दर-दर भटक रहा हूँ। जंगलों की खाक छान रहा हूँ। आप दयालु हैं... कृपालु हैं...मुझे यह बताइये कि इन असह्य दुःखों का अंत कब आएगा? मेरे प्रारब्ध में सुख नाम की चीज है या नहीं? मेरे जीवन के सफर में सुख नाम का इलाका आएगा या नहीं!'
आचार्यदेव ध्यानस्थ हुए। उन्हें देवी अम्बिका के शब्द याद आये। उन्होंने आँखें खोलीं। कुमारपाल के सामने देखा। इतने में उपाश्रय में महामंत्री उदयन ने प्रवेश किया। आचार्यदेव मौन रहे। महामंत्री ने वंदना की और गुरुदेव के पास बैठे। गुरुदेव ने कुमारपाल से कहा :
'वत्स, तुझे अल्प समय के बाद राज्य प्राप्त होगा। तू इस गुजरात का राजा होगा।'
कुमार इस बात पर हँस पड़ा। उसने कहा : 'महात्मन, अभी तो मेरी दशा एक भिखारी से भी ज्यादा बदतर है...
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