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कुमारपाल का राज्याभिषेक की गोद में खेले थे! उनकी दीक्षा के समय भी उदयन मंत्री ही मुख्य थे। कुमारपाल को सिद्धराज के सैनिकों से एकबार बचानेवाले भी वे थे। जब गुरुदेव ने कुमारपाल को राज्यप्राप्ति की भविष्यवाणी की थी... उस समय भी उदयन मंत्री उपस्थित थे... वह कागज, जिसपर भविष्यवाणी लिखी हुई थी... वह कागज भी उदयन मंत्री के पास सुरक्षित था।
उदयन मंत्री ने पाटन के जैन संघ को एकत्र करके कहा : 'हमारे महान उपकारी आचार्यदेव पाटन में पधार रहे हैं। उनका शानदार स्वागत करना है।'
सभी के हृदय आनन्द से नाच उठे। आचार्यदेव का भव्य नगर प्रवेश हुआ। उपाश्रय में पहुँचकर उन्होंने धर्मोपदेश दिया। सभी लोग प्रसन्न होकर अपने-अपने घर लौट गये। महामंत्री उदयन वहीं पर रुके। खड़े रहे। आचार्यदेव ने उनसे एकान्त में पूछा : 'महामंत्री, मेरी भविष्यवाणी के मुताबिक कुमारपाल को राज्य की प्राप्ति हुई है... क्या वह अब मुझे याद करता है या नहीं?'
उदयन मंत्री ने कहा : 'गुरुदेव, राजा ने... उसके बुरे दिनों में...गर्दिश के दिनों में जिन-जिन ने उस पर उपकार किये थे... उन सब को बुलाकर उनकी उचित कद्र की है।
जिस भीमसिंह ने कुमार पर दया लाकर उसे झाड़-झंखर में छुपाकर, सिद्धराज के सैनिकों से रक्षा की थी... उस भीमसिंह को बुलाकर उसे अपना निजी अंगरक्षक नियुक्त किया है। __ - जिस सेठ की पुत्रवधु देवश्री ने, तीन-तीन दिन के उपवास के बाद जब कुमारपाल बेहोश होकर जंगल के रास्ते पर गिर पड़ा था तब उसे प्रेम से खाना खिलाकर अपने रथ में बिठाया... उसे बुलाकर उसी के हाथ से राजतिलक करवाया। उसे अपनी धर्म की बहन मानी और एक पूरे गाँव का राज्य उसने बहन को भेंट दिया है। ___- जिस सज्जन कुंभार ने उसे ईटों के अलाव में छुपाकर उसके प्राण बचाये थे... उस सज्जन को राजा ने चित्रकुट का सामंत बनाया है!
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