________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०
'सिद्धहेम' व्याकरण की रचना राज परिवार की दो युवतियाँ ग्रन्थ के दाँये-बाँये चँवर डुलोने लगी। हजारों स्त्री-पुरुष उस ग्रन्थ की शोभायात्रा में शामिल हुए।
शोभायात्रा जब राजमहल के द्वार पर पहुंची तब राजा ने स्वयं स्वर्ण-रजत के फूलों से ग्रन्थ का स्वागत किया। उत्तम द्रव्यों से ग्रन्थ की पूजा की गई। गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी की स्तुति गाई गई। उस ग्रन्थ को आदरपूर्वक ग्रन्थालय में रखा गया।
राजसभा में गूर्जरेश्वर सिद्धराज ने घोषणा की :
आचार्यदेव ने 'सिद्धहेम व्याकरण' की रचना कर के गुजरात के यश को विश्व में फैलाया है। मेरी कीर्ति में चार चाँद लगाये हैं। और उन्होंने जिनशासन को गौरवान्वित किया है।'
इसके पश्चात् राजा ने राजपुरोहितों को बुलवाया । पाटन के विद्वान पंडितों को निमंत्रित किया और कहा :
'आप सब इस 'सिद्धहेम व्याकरण' का अध्ययन कीजिए व बाद में औरों को इसी व्याकरण की शिक्षा दें।'
राजपुरोहित ने कहा : 'महाराजा, हम अवश्य इस ग्रन्थ का अध्ययन करेंगे.... परन्तु इसके लिए इस ग्रन्थ की एक से अधिक प्रतियाँ चाहिएँ ।'
राजा ने तुरन्त आज्ञा करके गुजरात में से ३०० आलेखकों को बुलवाया और 'सिद्धहेम व्याकरण' लिखने का कार्यभार सोंपा। कुछ ही महीनों में प्रस्तुत ग्रन्थ की अनेक प्रतियाँ तैयार हो गयी। __ आज भी पाटन में व राजस्थान में सुन्दर-स्वच्छ व कलात्मक अक्षरों से शास्त्र लिखनेवाले वैसे आलेखक (लहिए) मौजूद हैं।
तीन-तीन साल तक विद्वानों ने इस ग्रन्थ का अध्ययन किया। उन्होंने राजा सिद्धराज के समक्ष ग्रन्थ की दिल खोलकर प्रशंसा की। 'अब तक के उपलब्ध व्याकरण ग्रन्थों में यह ग्रन्थ श्रेष्ठ है।'
राजा ने इस ग्रन्थ की एक से अनेक प्रतियाँ भारत के तमाम राज्यों में भेंट स्वरूप भेजीं। राज्यों के राजाओं ने आदर व सम्मान के साथ उस भेंट को स्वीकार किया। अपने-अपने ग्रन्थालयों में उस ग्रन्थ को रखा!
'कौए तो सब जगह काले ही होते हैं।' हेमचन्द्रसूरिजी की बड़ी भारी प्रशंसा होने लगी। राजसभा में उनका
For Private And Personal Use Only