Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit Author(s): Nathuram Premi Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 9
________________ अमेरिकाके उपनिवेश स्वतंत्र हो गये और वे यूनेटेड स्टेट्सकी प्रजासतात्मक गवर्नमेंटके रूपमें परिणत हो गये । यह बात इतिहासप्रसिद्ध है । जब मिलको यह समाचार मालूम हुआ तब उसने अपने देशके अभिमानके कारण सहज ही यह विश्वास कर लिया कि अँगरेज सरकारने जो अमेरिकापर कर लगानेका प्रयत्न किया था, वह बहुत ही उचित था । एक दिन उसने अपना यह विचार पिताके सामने भी प्रकट कर दिया । परन्तु उसे यह पक्षपातपूर्ण विचार कैसे पसन्द आ सकता था ? पक्षपातकी गन्ध भी वह सहन नहीं कर सकता था । उसने मिलको अच्छी तरह समझा दिया कि तुम गलतीपर हो और इसका कारण यह है कि तुम्हारा हृदय दुर्बल है। तुम्हें देश जाति आदिके झूठे अभिमान दबा लेते हैं । संसारमें ऐसे पिता बहुत ही कम मिलेंगे जो अपने लड़कोंकी गलती मालूम होनेपर सचेत कर देवें और उन्हें इस प्रकारसे समझा कर सत्यपथपर ले आवे । अध्यापनका अनुभव । जिस समय मिलने लैटिन पढ़ना शुरू किया उस समय उसके छोटे भाई भी पढ़ने योग्य हो गये थे । इस लिये पिताने उनके पढ़ानेका कार्य उसीको सौंपा । यद्यपि यह कार्य उसने अपनी इच्छासे नहीं किया, तो भी उसे लाभ बहुत हुआ। क्योंकि दूसरोंको पढ़ानेसे मनुष्यका ज्ञान अधिक दृढ़ और निश्चित हो जाता है। इसके सिवा उसे इस बातका भी अनुभव हो जाता है कि बालकोंको किन किन बातोंके समझनेमें कठिनाइयाँ आती हैं और उन्हें किस प्रकारसे समझाना चाहिये, जिससे उनके हृदयमें वे बातें अच्छी तरहसे जम जावें । आगे ग्रन्थरचनाके कार्यमें मिलने इस अनुभवसे बहुत लाभ उठाया ।Page Navigation
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