Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 73
________________ रहना कठिन है । कोई न कोई भयङ्कर अनर्थ हुए विना न रहेगा। मिल पारलियामेंटमें मजदूर पक्षकी ओरसे बोला करते थे। इसलिए उनसे प्रार्थना की गई कि आप मध्यस्थ बनकर इस उपद्रवको शान्त करा देवें-मजदूरोंको समझा देवें-कि वे अपनी सभा हाइड पार्कमें नहीं, कहीं अन्यत्र करनेका प्रयत्न करें। उसके साथ साथ 'राडिकल ' पक्षके और भी कई सभासदोंसे इस झगड़ेमें मध्यस्थ बननेके लिए कहा गया । यद्यपि मजदूरोंके जो अगुए थे वे समझदार थे इसलिए आज्ञाके विरुद्ध चलना उन्हें पसन्द न था; परन्तु सामान्य मजदूर इतने चिढ़ गये थे कि उन्हें उस विषयमें किसीकी बात सुनना भी पसन्द न था। ऐसे कठिन समयमें मिलने उनसे जाकर कहा“भाइयो, सरकारी फौजके साथ युद्ध करना दो अवस्थाओंमें ठीक हो सकता है-एक तो बलवा करने योग्य राज्यकी अव्यवस्था हो और दूसरे अपने पास कमसे कम इतनी तयारी हो कि बलवा किया जाय और उसमें विजय प्राप्त हो । यदि तुम समझो कि राज्यकी व्यवस्था ठीक नहीं है और हमारी तयारी भी पूरी पूरी है तो बेशक बलवा कर डालो; मैं नहीं रोकता ।" यह मार्मिक वचन सुनकर मजदूरोंकी बुद्धि ठिकाने आगई । उन्होंने कानूनके विरुद्ध चलनेका विचार छोड़ दिया । उस समय मिलको छोड़कर मजदूरोंपर जिनका कुछ वजन पड़ता था ऐसे केवल दो ही मनुष्य थे--एक ग्लैडस्टन और दूसरा ब्राइट । परन्तु ग्लैडस्टन लिबरल पक्षका अगुआ था, और लिबरल पक्ष उस समय अधिकारच्युत था । इसलिए वह तो कुछ कह नहीं सकता था. रहा ब्राइट सो वह उस समय लन्दनमें न था। . जब आयलैंडका भूमिसम्बन्धी बिल पारलियामेंटमें दो तीन बार पेश होनेपर भी पास नहीं हुआ, तब आयलैंडमें बड़ी गड़बड़ मच

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