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दूसरोंके उपकारके लिए अपना तन, मन और धन आदि सब कुछ खर्च कर डाला है । आजतक जितने सत्यशोधक हुए हैं उनमें यदि आप खोज करेंगे तो मिलसे अधिक उदार और कार्यतत्पर पुरुष शायद ही कोई मिलेगा। उसके विचार ठीक हों या न हों, यह दूसरी बात है, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उसने उन लोगोंको खूब ही सचेत किया जो 'वावा-वाक्यं प्रमाणं' कहकर प्राचीन सिद्धान्तोंपर ही सारा दारोमदार रखते थे और इस कारण जिनकी विचारशक्तिको जंग खा गई थी । स्वाधीन विचारोंकी महिमाको बढ़ाने और गतानुगतिकताको नष्ट करनेके लिए मिलने जो उद्योग और परिश्रम किया वह असाधारण था। उसकी लेखनीने इस विषयमें वड़ा काम किया । यद्यपि वह पक्का सुधारक और स्वाधीनचेता था; परन्तु उन सुधारकोंके जैसा उच्छृखल और अविचारी न था जो कि पुरानी इमारतको जड़से उखाड़कर उसके स्थानमें बिलकुल नई, इमारत खड़ी करना चाहते हैं, अथवा एक ही नियमको सब जगह एक ही रूपमें चरितार्थ करना चाहते हैं । उन्नतिके पथपर अग्रसर होनेवाले प्रत्येक देशमें मिल जैसे महापुरुषोंकी आवश्यकता होती है। बिना ऐसे पुरुषोंका अवतार हुए कोई भी देश सुख और स्वाधीनता नहीं प्राप्त कर सकता । इस समय जहाँ स्वाधीन विचार करना महापाप समझा जाता है और जहाँ स्वाधीनचेताओंकी मिट्टी पलीद होती है, उस भारतवर्षके लिए तो एक नहीं सैकड़ों मिलोंकी जरूरत है।
समाप्त।