Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 81
________________ ७७ शेष जीवन । वेस्ट मिनिस्टरमें मिलकी हार हुई । यह सुनकर उसके पास तीन चार स्थानोंसे और भी आमंत्रण आये कि तुम हमारे यहाँकी उम्मेदवारी करो। परन्तु उसने सोचा कि इस झंझटसे छुट्टी पानेका यह बहुमूल्य अवसर आ मिला है-इसे अव व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए, अतएव आमंत्रणको धन्यवादपूर्वक अस्वीकार कर दिया। इसके बाद वह अपने पहले उद्योगमें लग गया और बहुधा दक्षिण यूरोपमें ही रहने लगा । वर्षमें कभी एक दो बार लन्दन आता था, नहीं तो वहीं अविगनान नामक ग्राममें बना रहता था । मासिक पत्रोंमें लेख लिखनेकी उसने फिर धूम मचा दी । अब उसके लेख बहुधा 'कार्ट नाईट ली रिव्यू' नामक पत्रमें प्रकाशित होते थे। इसी समय उसने 'स्त्रियोंकी परवशता' को छपाकर प्रकाशित किया । मिलके जीवनका यह अन्तिम भाग बहुत ही शान्ति और सुखसे व्यतीत हुआ। उसके घरकी सारी व्यवस्था और देखरेख मिस टेलर रखती थी। उसने उसे कभी चिन्तित और असुखी नहीं होने दिया। इस अन्तिम समयमें वह कोई बड़ा ग्रन्थ नहीं लिख सका । विविध विषयोंपर कुछ निबन्ध ही लिखकर उसने संसारयात्रा पूरी कर दी । सन् १८७३ में इस महापुरुषका देहान्त हुआ । उस समय उसकी उम्र लगभग ६७ वर्षकी थी। __ मृत्युके अनन्तर उसके धर्मविषयक तीन निबन्ध और भी प्रकाशित हुए, जिनसे इस बातका पूरा पूरा पता लगता है कि उसके धर्मविषयक खयालात किस ढंगके थे। मिल उन महापुरुषों से था जिन्होंने सारी पृथिवीको अपना कुटुम्ब समझा है, जिनके हृदय बहुत विस्तीर्ण रहे हैं और जिन्होंने

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