Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 74
________________ ७० गई । आयरिश लोग कहने लगे कि हम इंग्लैंडसे बिलकुल जुदा होंगे। ऐसे लक्षण देख पड़ने लगे कि, यदि जमींदारों और किसानोंके सम्बन्धमें सुधार न किये जायेंगे तो वह देश किसीकी कुछ सुनेगा ही नहीं । यह प्रसंग देखकर मिलने, सन् १८६८ में,, ' इंग्लैंड और आयलैंड ' नामका एक निबन्ध लिखकर प्रकाशित किया । यह निबन्ध बहुत ही स्पष्टता और निर्मीकतासे लिखा गया । उसमें मुख्यतासे यह प्रतिपादन किया कि-" यह कोई नहीं चाहता कि इन दोनों देशोंका सम्बन्ध टूट जाय । इस समय जो किसान हैं उनसे जमीनका महसूल क्या लिया जायगा, यह सदाके लिए ठहरा देना चाहिए और उन्हें स्थायी किसान बना देना चाहिए । इस तरह जमीदारों और किसानोंका झगड़ा मिटा देना चाहिए।" यह निबन्ध आयलैंडके लोगोंको छोड़कर और किसीको पसन्द न आया। उस समय उसका कुछ भी फल न हुआ । मिलने भी उसे तात्कालिक फलके लिए न लिखा था। उसने उसे भविष्यकी आशा रखकर इस कहावतके अनुसार लिखा था कि “ यदि हकसे बहुत माँगा जाय तो थोड़ा तो मिलता ही है । " हुआ भी यही । सन् १८७० में जो ग्लैडस्टन साहबका इसी विषयसम्बन्धी बिल पास हुआ उसका कारण अनेक अंशोंमें यही निबन्ध था। अँगरेजलोगोंका प्रायः यह स्वभावसा पड़ गया है कि वे मध्यमश्रेणीके नियमको ही जल्दी मंजूर करते हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह नियम मध्यम श्रेणीका है । जब तक उनके सामने कोई बहुत उच्च श्रेणीकी बात नहीं लाई जाती तबतक उस विषयकी चाहे जितनी सामान्य बात क्यों न हो उन्हें बड़ी दिखती है । इसलिए यदि किसी विषयमें उनकी अनुकूलताकी जरूरत हो, तो उनके सामने पहले उसकी अपेक्षा अधिक बड़े विषयका

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