Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ रहता है। अर्थात् यह डर हो जाता है कि कहीं सब लोगोंके आचारविचार एकसे न हो जायें। क्योंकि एकसे आचार-विचारोंका होना मानव-जातिकी उन्नतिको रोकनेवाला है । जो केवल वर्तमान स्थितिका अवलोकन करनेवाले हैं-भविष्यकी बुराई भलाईको नहीं सोच सकते हैं-उन्हें इस प्रकारके भयकी कल्पना होनी आश्चर्य-जनक मालूम होगा। अर्थात् वे यह न समझ सकेंगे कि आचार-विचारकी समता भयप्रद क्यों है ? इससे मनुष्यजातिका क्या अकल्याण होता है ? उन्हें इस विषयमें आश्चर्य होना ही चाहिए । इस समय समाज और संस्थाओंमें बड़ी भारी क्रान्ति हो रही है । इससे यह काल नये नये विचारोंकी उत्पत्तिके लिए अनुकूल है और इस समय लोग नवीन विचारोंके सुननेमें भी पहलेके समान हठ नहीं करते हैं उन्हें शौकसे सुनते हैं। परन्तु यह स्मरण रखना चाहिए कि जब पुराने विचार और विश्वास डगमगाने लगते है और नवीन विचार अस्थिर रहते हैं, उस समय ऐसा होता ही है । इस क्रान्तिकालमें जिन लोगोंके मस्तकोंमें थोड़ी बहुत तेजी रहती है वे अधिकांश प्राचीन विचारोंको तो छोड़ देते हैं और जो शेष विचार रह जाते हैं उनके विषयमें उन्हें यह शङ्का रहती है कि न जाने ये स्थिर रहेंगे या नहीं। इसलिए उन्हें नवीन मतोंके सुननेकी बड़ी उत्कण्ठा रहती है। ऐसी दशामें तो सचमुच ही एकसे आचार-विचारोंके होनेकी भीति नहीं रहती है। परन्तु ऐसी स्थिति चिरकाल तक नहीं रहती। जब तक क्रान्तिकाल रहता है तभी तक रहती है। आगे क्या होता है कि धीरे धीरे किसी एक विचार-समुदायको लोग मानने लगते हैंउसपर दृढ़ विश्वास करने लगते हैं और फिर उस विचारसमुदायके अनुकूल सामाजिक संस्थायें बनने लगती हैं, तथा क्रम

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84