Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 58
________________ करूँगा, उसे एक बार फिर अच्छी तरह देख जाऊँगा । परन्तु उसकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी । फ्रान्समें प्रवास करते समय मार्गमें ही उसकी प्यारी स्त्रीका कफ रोगसे देहान्त हो गया । स्वाधीनताका और संशोधन फिर न हो सका। वियोगी जीवन । अपनी अर्धाङ्गिनीके मरनेपर वह अपना जीवन इस प्रकार व्यतीत करने लगा जिससे यह अनुभव होता रहे कि वह मेरे पास ही हैउसका वियोग अधिक कष्टप्रद न हो। जहाँ स्त्रीकी समाधि थी उसीके पास उसने एक झोपड़ी खरीद ली और प्रायः उसीमें वह अपनी समदुःखिनी ( टेलरकी लड़की ) के साथ रहने लगा । यह लड़की ही इस समय उसके सन्तोषका कारण थी । लड़की बड़ी गुणवती और विनयवती थी। मिलको वह किसी प्रकारका कष्ट न होने देती थी। गृह-सम्बन्धिनी सारी व्यवस्था वही करती थी। मिलकी स्वर्गीया पत्नीको जो जो बातें पसन्द थीं, निःसीम भक्तिमान् पुरुषके समान, वह उन्हींके अनुकूल आचरण करता था । इस विषयमें उसकी अवस्था वैसी ही हो गई थी जैसी कि धर्मपर विश्वास करनेवालोंकी हुआ करती है। स्वाधीनताका प्रकाशन । स्त्रीके मरनेपर मिलने अपने सबसे अधिक प्यारे और सबसे अधिक परिश्रमसे बनाये हुए 'स्वाधीनता' नामक ग्रंथको छपाकर प्रकाशित किया । परन्तु वह जैसा रक्खा था वैसेका वैसा प्रकाशित किया । उसमें एक अक्षरका भी परिवर्तन करना उसने उचित न समझा । यद्यपि उसका अन्तिम संशोधन होना बाकी था, और यह

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