Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 69
________________ कानून बनानेवाली सभा जितनी जोरदार होनी चाहिए उतनी नहीं हो पाती । वह अकसर कहा करता था कि धन खर्च करके एम० पी० बननेकी अपेक्षा तो मेरे लिए यही अच्छा है कि ग्रन्थ लिखकर लोगोंका उपकार करता रहूँ । मिलके इस प्रकारके विचारोंसे उसके मित्रोंकी इच्छा बहुत दिनों तक पूर्ण न हुई । ___ परन्तु अबकी दफे ( सन् १८६५ में ) वेस्ट मिनिस्टरवाले उसके पीछे पड़ गये । वे उसपर मुग्ध होकर यहाँ तक कहने लगे कि आपका नाम बगैरह सब हमीं सूचित करेंगे, आपको इसके लिए कोई प्रयत्न न करना पड़ेगा। तब मिलने इस खयालसे कि पीछेके लिए कोई झंझट न रह जाय अपने जो जो विचार और सिद्धान्त थे. उन्हें साफ साफ शब्दोंमें लिखकर दे दिये और यह भी लिख दिया कि मैं न तो वोट एकडे करने और खर्च करनेके प्रपंचमें पढूंगा और न इस बातका ही वचन दे सकता हूँ कि सभासद होनेपर मैं स्थानीय बातोंके विषयमें कुछ प्रयत्न करूँगा। उन लोगोंके कई प्रश्नोंके उत्तर देते हुए उसने एक जगह अपना यह मत भी प्रकट कर दिया कि पुरुषोंके समान स्त्रियोंको भी वोट देनेका और सभासद होनेका अधिकार होना चाहिए। चुनाव करनेवालोंके सामने इस तरह स्पष्टतासे अपने मत प्रकट करना मिलका ही काम था। इसके पहले किसी भी उम्मेदवारने ऐसी निस्पृहता प्रदर्शित न की थी । इतनेपर भी वह वेस्ट मिनिस्टरकी ओरसे पारलियामेंटका मेंबर हो गया। उस समय किसीको स्वप्नमें भी यह खयाल नहीं था कि ऐसा स्पष्टवक्ता राष्ट्रीय-सभाका सभासद हो जायगा । इस विषयमें एक प्रसिद्ध ग्रन्थकर्ताने तो यहाँ तक कह

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