Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 68
________________ ६४ बिलकुल अनुकूल था और वहाँके अगुआ उसे पसन्द भी करते थे। परन्तु उस समय मिल इस आमंत्रणको स्वीकार न कर सका था। क्योंकि उस समय वह ईस्ट इण्डिया कम्पनीकी नौकरी करता था । उसके पास इस कार्यके लिए समय न था। ___ जब सन् १८५८ में मिल नौकरीसे अलग हो गया तब उसके मित्रोंकी प्रबल इच्छा हुई कि वह पारलियामेंटमें प्रवेश करे । परन्तु उसका पारलियामेंटका सभासद होना एक प्रकारसे असम्भव ही था। क्योंकि एक तो उसके विचार और विश्वास लोगोंको बिलकुल पसन्द न थे और दूसरे वह किसी पक्षका आज्ञाकारी न होना चाहता था । अब रहा बहुतसा धन खर्च करके इस कार्यको सिद्ध करना. सो इसे वह अन्याय समझता था-इससे उसे बहुत ही घृणा थी। उसका यह मत था कि चुनावके कार्यमें जो कुछ उचित खर्च हो उसे या तो सरकारको करना चाहिए या स्थानीय म्यूनिसिपालटियोंको । उम्मेदवारोंके जो पृष्ठपोषक या सहायक हों उन्हें चाहिए कि वे विना कुछ लिये दिये उनके गुणोंको चुननेवालोंके सामने प्रकट करें अथवा जरूरत हो तो इसके लिए वे अपनी खुशीसे कुछ चन्दा एकट्ठा कर लें । परन्तु यह हरगिज न होना चाहिए कि सार्वजनिक कार्योंका भार लेनेके लिए किसीको अपनी गाँठके पैसे खर्च करने पड़ें । ऐसा करना एक प्रकारसे सभासदीकी खरीद करना है । जो मनुष्य ऐसी खरीद करता है वह मानो यह प्रकट करता है कि मैं सार्वजनिक बुद्धिसे नहीं, अपने किसी स्वार्थसे सभासद होता हूँ। इस खरीदीकी पद्धतिसे सबसे अधिक हानि यह होती है कि धनवान् किन्तु गुणहीन उम्मेदवार तो विजयी हो जाते हैं, पर गुणवान् किन्तु धनहीन अथवा धन खर्च न करनेवाले पीछे रह जाते हैं। और इससे

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