Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 66
________________ होमल्टनके तत्त्वशास्त्रका पर्यवसान दैववादपर ही होता है-अन्त में वह दैववादपर ही ठहरता है और यह मनुष्य-समाजको आलसी बनानेवाला है। पहले इस निरुपयोगी तत्त्वके विरुद्ध दो ग्रन्थ-प्रकाशित हो चुके थे। एक तो मिलके पिता जेम्स मिलका "मनका पृथक्करण" और दूसरा बेन साहबका 'मन' । अब मिलके इस तीसरे ग्रन्थके प्रकाशित होनेसे अनुभववादियोंका बल बहुत बढ़ गया । हेमिल्टनके दैववादको मिलकी निष्पक्ष किन्तु तेजस्विनी लेखनीने ढीला कर दिया। इस विषयमें उसे खासी सफलता हुई । आगस्ट काम्टीके मतकी समालोचना । फ्रान्समें 'आगस्ट काम्टी' नामका एक तत्त्ववेत्ता हो गया है । इंग्लैंडकी प्रजा पहले इसके ग्रन्थों या सिद्धान्तोंसे बिलकुल अनभिज्ञ थी । परन्तु इसके बहुतसे सिद्धान्त अच्छे और उपयोगी थे । इस लिए मिलने अपने लेखोंमें विशेष करके ' तर्कशास्त्र ' नामक ग्रंथों उनकी खूब ही प्रशंसा की थी। इस तरह मिलके ही द्वारा इंग्लैंडमें उसकी प्रसिद्धि हुई थी। यह प्रसिद्धि यहाँतक हुई कि लोग उसे उस युगका प्रख्यात तत्त्ववेत्ता समझने लगे और इस श्रद्धाके वशवर्ती होकर बहुतसे लोग उसके अच्छे सिद्धान्तोंके साथ साथ भ्रमपूर्ण और अग्राह्य सिद्धान्तोंको भी मानने लगे । मिलने उस समय, जब कि काम्टी इंग्लैंडमें अपरचित था, उसके गुणोंको प्रकाशित करना और दोषोंके विषयमें मौन रहना अच्छा समझा था। परन्तु अब, जब उसके अग्राह्य मतोंका भी ग्रहण होने लगा, उससे चुप नहीं रहा गया और जिस तरह एक दिन काम्टीकी स्तुति करनेका भार उसने लिया था, उसी तरह अब उसकी योग्य समालोचना करनेका भार भी उसीको उठाना पड़ा। " वेस्ट मिनिस्टर रिव्यू ' में

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