Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 64
________________ ६० परताको और इस अविचारितरम्य समझको छोड़कर कि स्त्रीजातिको दासी बनाये रखनेमें ही संसारका कल्याण है, स्त्रियों को स्वाधीनताकी स्वर्गीय सुधाका दान करना चाहिए। इस ग्रन्थमें भी जो गम्भीरता और मर्मभेदकता है वह सब मिलकी गुणवती स्त्रीका प्रसाद है। उपयोगिता तत्त्व। इसके बाद मिलने — उपयोगिता तत्व ' नामक ग्रन्थको छपवाकर प्रकाशित किया। उसने अपनी स्त्रीकी जीवितावस्थामें इस विषयके जो लेख लिखकर रख छोड़े थे उन्हींको एकत्र करके और उन्हींमें कुछ संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन करके इस ग्रन्थको तैयार किया। अमेरिकाका युद्ध । उपयोगितातत्त्वके छपनके पहले ही अमेरिकाका पारस्परिक युद्ध शुरू हो गया था । वहाँके दक्षिण और उत्तरके राज्योंमें गुलामोंके सम्बन्धमें बहुत दिनोंसे कलह हो रहा था । यह बात मिलको अच्छी तरह मालूम थी। इस लिए उसने तत्काल ही ताड़ लिया कि यह युद्ध राज्योंके बीचमें नहीं, किन्तु स्वाधीनता और गुलामीके बीचमें ठना है। परन्तु इंग्लैंडके ऊपरा ऊपरी दृष्टिवाले राजनीतिज्ञोंके खयालमें यह बात नहीं आई। उन्होंने यह समझ लिया कि गुलामोंका व्यापार करनेवाले दक्षिणी राज्य इस विषयमें निरपराध इसीलिए वे उत्तरीय राज्योंके विरुद्ध लेख लिखने तथा व्याख्यानादि भी देने लगे। उस समय इस बेसमझीको दूर करनेके लिए मिलने बहुत प्रयत्न किया और उसमें उसे थोड़ी बहुत सफलता भी प्राप्त हुई। हेमिल्टनके तत्त्वशास्त्रकी परीक्षा । इसके कुछ समय पीछे मिलने ' हेमिल्टनके तत्त्वशास्त्रकी परीक्षा' नामक ग्रन्थकी रचना की। उस समय सर विलियम हेमिल्टन एक

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