Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 57
________________ एकहीसे विचार सूझते थे । परन्तु हमें इस विषयका विचार करते समय यह न भूल जाना चाहिए कि मिलके हृदयमें जो स्रोत बहता था उसका भी कारण एक प्रकारसे उसकी स्त्री ही थी। अभिप्राय यह है कि स्वाधीनतामें जो जो कल्पनायें और जो जो विचार हैं, उनमें मिलका अंश होनेपर भी वे उसकी गुणवती स्त्रीके ही समझने चाहिए। विवाहित जीवनके कार्य । मिलके विवाहित जीवनकी, अर्थात् लगभग ७॥ वर्षकी, जो उल्लेखयोग्य बातें हैं उनका सार यह है:___ विवाह होनेपर मिलने अपने स्वास्थ्यकी रक्षाके लिए इटली, सिसली और ग्रीसमें लगभग छः महीने प्रवास किया । सन् १८५६ में, ईस्ट इंडिया कम्पनीके आफिसमें, उसकी तरक्की हुई और जब सन् १८५८ में कम्पनी टूट गई तब वह नौकरीसे जुदा हो गया। सन् १८५६ से १८५८ तक ये दोनों स्त्री-पुरुष 'स्वाधीनता ' की रचनामें लगे रहे। मिलने इस ग्रन्थको पहले सन् १८५४ में एक छोटेसे निबन्धके रूपमें लिखकर रख छोड़ा था; परन्तु जब वह सन् १८५५ की जनवरीमें रोमका प्रवास कर रहा था तब उसका एकाएक यह विचार हो गया कि उसे बढ़ाकर ग्रन्थका स्वरूप देना चाहिए। उसने इस ग्रन्थकी रचना और संशोधनमें निःसीम परिश्रम किया । इतना परिश्रम उसने किसी और ग्रन्थमें नहीं किया । जैसा कि उसका नियम था उसने इस ग्रन्थको दोबार लिखकर रख छोड़ा और, फिर, समय समयपर निकालकर प्रत्येक वाक्य पढ़कर, अच्छी तरह विचार करके और परस्पर ऊहापोह करके संशोधन किया । इसके बाद उसने निश्चय किया कि सन् १८५८-५९ की हेमन्त ऋतुमें, जब दक्षिण यूरोपका प्रवास

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