Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 55
________________ तात्त्विक ग्रन्थोंको छोड़कर दूसरे विषयके ग्रन्थोंमें कुछ अधिक कर सकता है। परन्तु इस बातको वह जोरके साथ कहता था कि दूसरोंसे किसी विषयके सीखनेकी शक्ति और उत्साह औरोंकी अपेक्षा मुझमें अधिक है। इसी कारण वह समझता था कि कॉलरिज, कारलाईल आदिके गहन भाषामें गूथे हुए बहुमूल्य विचारोंको बालक भी समझ सकें, ऐसी सरलसे सरल और सुगमसे सुगम रीतिसे प्रकाशित करना मेरा कर्तव्य है । हाँ, उनमें जितना अंश भ्रमपूर्ण या गलत हो, उतना निकाल डालना चाहिए। उसे इस प्रकारकी शिक्षा बालपनसे ही मिली थी। इसलिए उक्त विलक्षण-बुद्धि-शालिनी स्त्रीसे जब इसका विचारसमागम बहुत ही घनिष्ठ हुआ तब उसने अपने लिए केवल यही कार्य शेष छोड़ा कि उसके विशाल मस्तकसे निकले हुए तत्त्वोंको समझकर उन्हें अपनी विचार-परम्पराले मिला देना और अपने तथा उसके विचारोंमें जो अन्तर हो उसको पूरा कर देना। __ 'न्यायशास्त्रपद्धति ' नामका ग्रन्थ मिलकी स्वतन्त्र रचना है । उसके रचनेमें उसे मिसेस टेलरसे कुछ भी सहायता नहीं मिली। परन्तु 'अर्थशास्त्रके मूलतत्त्व ' नामक ग्रन्थकी रचनामें मिसेस टेलरने बहुत सहायता की थी। उसके जिस भागका सर्वसाधारणपर बहुत प्रभाव पड़ा उसे मिलने उसीके सुझानेपर लिखा था। इस भागमें मजदूरोंकी भावी स्थितिका विचार किया गया है । अर्थशास्त्रका जो पहला मसविदा तयार किया गया था उसमें यह विषय न लिखा गया था। उसके कहनेसे ही मिलके ध्यानमें यह बात आई थी कि इस विषयके बिना अर्थशास्त्र अधूरा रह जायगा और, प्रायः उसीके मुँहसे निकले हुए शब्दोंमें उसने इस भागको लिखा था। इसके सिवा मिलको इस विषयको अच्छी तरहसे समझनेकी स्फूर्ति भी उसीके सुझानेसे हुई

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