Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 48
________________ ४४ कि यद्यपि मेरे विचार उच्चतम हैं तथापि अव्यवहारिक हैं-वे व्यवहारमें नहीं लाये जा सकते । इस तरह वह अधिक नहीं तो इतनी अधोदशाको अवश्य प्राप्त हो जाता है कि जिस मतसे लोग प्रसन्न हों, धीरे धीरे, उसे ही प्रतिपादन करने लगता है। इसलिये जिनकी बुद्धि विलक्षण है-जो अपने ज्ञानको विकसित करना चाहते हैं उन्हें जहाँ तक बने ऐसे लोगोंसे मेल जोल कम बढ़ाना चाहिए। जिसे अपना सुधार करना हो, उसे चाहिए कि ऐसे धनी, मानी, ठाठपसन्द लोगोंमें न घुसकर ऐसे लोगोंसे परिचय बढ़ावे जिनके विचार और जिनकी प्रतिभा अपनेसे उन्नत हो । इस कारणसे, और ऐसे ही और कई कारणोंसे, मिलकी मित्रमंडली इनी गिनी रह गई । मिसेस टेलरका पवित्र सम्बन्ध । मिलकी रही हुई मित्रमंडलीमें मिसेस टेलर मुख्य थी। इस समय उसक एक लड़की थी। उसे लेकर वह प्रायः एक गाँवमें रहा करती थी-लन्दनमें अपने पतिके पास बहुत कम रहती थी। मिल उससे मिलने के लिए गाँवमें और लन्दनमें दोनों ही जगह जाया करता था । उसके पतिकी अनुपस्थितिमें-पतिके दूर रहनेपर भी वह उससे बारबार मिलता था और कभी कभी उसके साथ अकेला सफर भी करता था । यदि कोई साधारण स्त्री होती तो उसके जीमें यह शङ्का आये बिना नहीं रहती कि, इससे मुझे लोग नाम रक्खेंगे। परन्तु वह बड़ी ही दृढ़प्रतिज्ञ और उन्नतहृदय थी। इसलिए उसने ऐसे कमजोर खयालोंको कभी अपने पास भी नहीं फटकने दिया। इस समय इन दोनोंका जो सम्बन्ध था वह अतिशय घनिष्ट होनेपर भी सर्वथा पवित्र था। उसमें अपवित्रताके लिए बिलकुल अवकाश नहीं था। इतनेपर

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