Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 46
________________ कभी लेख लिखता था और उन्हें 'एडिनबरा-रिव्यू में प्रकाशित करता था। इस पत्रके ग्राहक बहुत थे इस कारण अपने विचारोंका अधिक प्रसार करनेके लिए उसने इसीको पसन्द किया था। तर्कशास्त्रकी समाप्ति और उसका प्रकाशन । ___ लन्दन-रिव्यूसे छुट्टी पानेपर मिलने सबसे पहले अपने तर्कशास्त्रको समाप्त किया। इसके बाद उसने लगभग एक वर्ष तक बैठकर इस ग्रन्थकी फिरसे नकल की और इस समय खूब सोच विचारकर उसमें बहुतसा संशोधन तथा परिवर्तन किया। मिलके जितने ग्रन्थ हैं वे सब इसी पद्धतिसे तैयार किये गये हैं। उसका एक भी ग्रन्थ ऐसा नहीं है जो कमसे कम दो बार न लिखा गया हो। यह पद्धति बहुत ही अच्छी है । इससे ग्रन्थ सुगम, सुन्दर और निर्दोष बन जाता है । क्योंकि जो ग्रन्थ एक बार समाप्त हो जाता है, यदि उसका दूसरी बार स्वस्थतासे अवलोकन किया जाय, तो उसमें बहुतसी बातें सुधारने और लौट फेर करने योग्य मिलती हैं। ___ तर्कशास्त्र तैयार होनेपर, सन् १८४१ में, 'मेरे ' नामक पुस्तकप्रकाशकके पास भेजा गया । परन्तु वह भलामानस उसे कई महीने अपनी टेबिलपर ही रक्खे रहा और अन्तमें वापिस कर गया। इसके बाद मिलने उसे 'पार्कर' नामक प्रकाशकके पास भेजा और उसने १८४३ की वसन्तऋतुमें छपाकर प्रकाशित कर दिया। ऐसे गहन विषयों के ग्रन्थोंकी विक्री एक तो यों ही बहुत कम होती है, फिर यह ग्रन्थ एक बिलकुल ही नई पद्धतिपर बनाया गया था न्यायशास्त्रकी वह पद्धति उस समय रूढ़ नहीं थी, तो भी छः साल के भीतर उसके तीन संस्कारण प्रकाशित हो गये। इससे समझना चाहिए कि मिलके

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