Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 45
________________ कर लिये थे, तो भी जिस समय उसकी मृत्यु हुई वह समय उसके मतोंके लिए बहुधा अनुकूल न था । पुराने और नये मित्र । पिताकी मृत्युके अनन्तर मिल ' लन्दन रिव्यू ' में अपनी अभिरुचिके ही लेखोंको स्थान देने लगा। इससे उसके कुछ पुराने मित्र अप्रसन्न हो गये; परन्तु साथ ही कई नवीन मित्र उसे और मिल गये । इन नये मित्रों में कार्लाइल सबसे मुख्य था। अब इसके लेखोंकी लन्दन रिव्यूमें धूम मच गई । दूसरे विद्वानोंके भी अच्छे अच्छे लेख उसमें प्रकाशित होने लगे। तर्कशास्त्रका पुनः प्रारम्भ और लन्दन रिव्यूसे छुट्टी । सन् १८३७ में मिलने अपने तर्कशास्त्र नामक ग्रन्थको फिर लिखना आरम्भ किया । यह ग्रन्थ उसने लगभग पाँच वर्ष पहले शुरू किया था, परन्तु कई कारणोंसे वह उसे पूर्ण न कर सका था। इसके कुछ दिन पीछे 'वेवेल' नामक प्रसिद्ध नैयायिकका 'न्यायशास्त्रका इतिहास' नामका ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। मिलने उसे तथा वैसे ही और कई ग्रन्थोंका फिर अध्ययन तथा मनन किया और अब इतने समयके पीछे उसने अपने ग्रन्थका काम फिर चलाया । इन दिनों मासिक पत्रके सम्पादनका कार्य जोरोशोरसे चलता था तो भी अवकाश निकालकर वह इस ग्रन्थको लिखता था । इस तरह उसने लगभग दो तृतीयांश ग्रन्थका मसविदा तयार कर लिया। इसी समय, सन् १८४० में, मासिक पत्रका भार किसी दूसरेपर डालकर उसने इस बखेड़ेसे छुट्टी पा ली। इसके बाद यदि उसे अवकाश मिलता था और कुछ आवश्यकता होती थी तो वह कभी

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