Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 21
________________ मानसशास्त्रका अध्ययन, लेखनकला और शास्त्रचर्चा । इसके पश्चात् मिल लॉक, हर्टले, बर्कले, ह्यूम और रीड आदि विद्वानोंके मनोविज्ञानसम्बन्धी ग्रन्थोंका अध्ययन करने लगा और इसी समयसे उसने लेख लिखनेका भी प्रारंभ किया। अब वह पढ़नेकी अपेक्षा लिखनेकी ओर अधिक ध्यान देने लगा और साथ ही जुदा जुदा विषयोंपर वादविवाद या संभाषण करनेकी ओर भी उसने ध्यान दिया । इन दोनों साधनोंसे उसकी बुद्धि और ज्ञान दोनों परिपक्व तथा यथार्थ होने लगे। सन् १८२३ में उसने अपने कुछ मित्रोंकी सहायतासे एक सभा स्थापित की और उसका नाम 'उपयुक्ततातत्त्वविवेचिनी सभा' रक्खा । इसकी महीने में दो बैठकें होती थीं और उनमें उपयुक्ततातत्त्वके आधारसे निबन्ध-वाचन तथा मौखिक चर्चा होती थी। इस सभाके दशसे अधिक मेम्बर कभी नहीं हुए। क्योंकि उस समय इस विषयकी ओर लोगोंकी रुचि न थी । सन् १८२६ में यह सभा बन्द हो गई। नौकरी। सन् १८२३ में मिलने ईस्ट इण्डिया आफिसमें प्रवेश किया । इस समय उसकी उम्र १७ वर्षकी थी। वहाँ उसकी क्रम क्रमसे उन्नति होती गई और अन्तमें वह एग्जामिनरके दफ्तरका सबसे बड़ा अधिकारी हो गया । पर सन् १८५८ में, जब ईस्ट इंडिया कम्पनी टूटी, तब यह दफ्तर भी उठ गया और मिलको नौकरीसे अलग होना पड़ा । सब मिलाकर उसने ३५ वर्ष नौकरी की। जीविका और ग्रन्थादिलेखनसम्बन्धी अनुभव । इस नौकरीके अनुभवसे मिलने यह मत स्थिर किया था कि जिनकी यह इच्छा हो कि हम दिन रातके २४ घंटोंमेंसे . कुछ समय

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