Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 37
________________ ३३ होता था कि मैं अपने पितासे शान्तिके साथ विचार करके यह निश्चय कर लूँ कि मेरे और आपके तात्त्विक विचारोंमें क्या अन्तर है । क्योंक उसे इस बातका भय था कि ऐसा करनेसे पिताको यह विश्वास हो जायगा कि मेरा बेटा मेरा मत छोड़कर प्रतिपक्षियोंमें जा मिला है । इसे सौभाग्य ही समझना चाहिए, जो राजनैतिक विषयोंमें अब तक बाप-बेटेका एक ही मत था । इससे उन दोनोंका राजनैतिक संभापण अच्छी तरह पार पड़ जाता था। जिन विषयोंमें वह समझता था कि पितासे मेरा मतभेद होगा, उनके सम्बन्धकी वह कभी चर्चा ही न करता था। क्योंकि वह सोचता था कि यदि पिता मेरे मतके कुछ विरुद्ध कहेंगे तो मुझसे चुप भी न रहा जायगा और कुछ कहा भी न जायगा । यदि चुप रहूँगा तो यह बात मेरा चित्त स्वीकार न करेगा और यदि कुछ कहूँगा तो उन्हें बुरा लगेगा और मुझे भी खेद होगा। इस समयकी निबन्ध-रचना । इस बीचमें मिलने, जिनका यथास्थान उल्लेख हो चुका है, उनके सिवा और क्या क्या रचनायें कीं, यह बतलाकर अब हम मिल-चरितके इस भागको समाप्त करेंगे___ सन् १८३० और ३१ में उसने 'अर्थशास्त्रके अनिश्चित प्रश्नोंपर विचार ' नामक पाँच निबन्धोंकी रचना की और सन् १८३२ में 'टेट्स मेगजीन' नामक मासिक पत्रमें कई अच्छे अच्छे निबन्ध लिखे । मिसेस टेलरका परिचय । सन् १८३० में मिलके जीवनका एक नवीन अध्याय शुरू हुआ। इस साल उससे और टेलर नामके एक आदमीकी स्त्रीसे पहले पहल

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