Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ वे कुछ करके दिखला सकें और यह सिद्ध कर सकें कि हम पुरुषोंसे किसी बातमें कम नहीं हैं:। इन बातोंकी चर्चा वह अपनी मित्रमंडलीमें भी किया करती थी। उसकी मित्रमंडलीमें जो थोड़ेसे पुरुष थे, दैवयोगसे उनमें मिलका भी प्रवेश हो गया। सुतरां वह मिलसे भी इस विषयपर तथा दूसरे विषयोंपर चर्चा करने लगी। ___ मिसेस टेलरमें, देवमूढ़ता न थी, अर्थात् उसे यह विश्वास न था कि कोई काम किसी देवताकी कृपासे अथवा ईश्वरकी इच्छासे होता है । अकसर लोगोंका यह खयाल रहता है कि सृष्टिकी रचना सर्वांशपूर्ण है-उसमें किसी बातकी कमी नहीं है । परन्तु वह इस बातको न मानती थी। उसका खयाल इससे विरुद्ध था । वह समझती थी कि वर्तमानकालिक सृष्टिमें और समाजरचनामें बहुत ही कमी है। इससे पहले इससे भी अधिक कमी थी, जो धीरे धीरे पूर्ण हुई है । ज्यों ज्यों मनुष्यका ज्ञान बढ़ता जायगा, वह वर्तमान कमीको पूरी करता जायगा । उसकी बुद्धिकी प्रत्येक विषयमें अबाध गति थी। वह प्रत्येक विषयके सार या सत्त्वपर पहुँचती थी-चाहे वह विषय गंभीर तात्त्विक हो चाहे मामूली कामकाजसम्बन्धी हो । यदि वह किसी कलाके सीखनेमें जी लगाती तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह निपुणताकी हदपर पहुँच जाती। क्योंकि उसकी नैतिक और बौद्धिक दोनों शक्तियाँ बहुत ही तीक्ष्ण थीं और कल्पनाशक्ति भी उसकी बहुत विलक्षण थी। यदि वह वक्तृत्व-कलाकी ओर ध्यान देती तो एक बड़ी भारी व्याख्यानदात्री हुए विना न रहती। क्योंकि वह सहृदया और तेजस्विनी थी और उसके बोलनेकी शैली भी बहुत ही अच्छी थी। इसी प्रकार यदि उसके भाग्यमें कहींकी रानी होना लिखा होता तो वह इस उच्चपदको अपने गुणोंसे और भी पूज्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84