Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 27
________________ २३ पढ़नेके लिये ये लोग कुछ दिनोंतक और भी एकट्ठा हुए और उसे समाप्त करके फिर इन्होंने इस सभाका विसर्जन कर दिया । इस तरह एकत्र होकर गहन विषयों के स्वाधीनतापूर्वक अध्ययन और विवेचन करनेसे मिलको बड़ा लाभ हुआ । उसके हृदयमें जो प्रत्येक विषयको स्वतंत्ररीतिसे विचार करनेकी शक्तिका अंकुर था वह बहुत बढ़ गया और दृढ़ हो गया। इसके बाद उसका यह स्वभाव हो गया कि यदि कहीं कोई बात अटक जाय, तो उसे आधी धोधी समझकर न छोड़ देना चाहिये । जबतक विवरण और विवेवचनके द्वारा उसका पूरा पूरा समाधान न हो जाता था तबतक वह आगे नहीं चलता था और जबतक कोई विषय सब ओरसे समझमें न आ जाता था तबतक वह यह नहीं कहता था कि मैंने उसे समझ लिया। व्याख्यानशक्तिके बढ़ानेका प्रयत्न । इसी समय उसने जनसमूहमें बोलनेका भी अभ्यास बढ़ाया । यदि कभी दश आदमियोंमें बोलनेका मौका आ जाता था तो वह उसे कभी व्यर्थ न जाने देता था। यद्यपि वकील बैरिस्टर बनकर रुपया कमानेकी उसकी इच्छा नहीं थी, तथापि वह यह अवश्य चाहता था कि मैं कभी पारलियामेंटका मेम्बर बनूँ और उसके द्वारा समाज-सुधारके कार्यमें यथाशक्ति सहायता पहुँचाऊँ। इसी उत्कट इच्छासे उसने व्याख्यानशक्तिके बढ़ानेका उद्योग किया और इसके लिये उसने, अपने कुछ मित्रोंकी सहायतासे, एक 'विवेचक-सभा' स्थापित की । इस सभाकी बैठक हर पन्द्रहवें दिन होती थी। इसके सभासदोंमें टोरी और लिबरल दोनों ही पक्षके लोग भरती किये जाते थे । यह इस लिये कि सभामें परस्पर खंडन-मंडन करनेका मौका आता रहे । परन्तु इसमें टोरी

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