Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 33
________________ सन् १८२८ की वर्षाऋतुमें वह एक दिन वर्डस्वर्थ कविके काव्यग्रन्थ सहज ही पढ़ने लगा। उस समय उसने स्वप्न में भी यह न सोचा था कि इससे मेरी मानसिक व्याधि सर्वथा दूर हो जायगी। क्योंकि, इसके पहले उसने वायरन कविकी काव्य-औषधि सेवन करके देखी थी, पर उससे उसे जरा भी शान्ति नहीं मिली थी। वर्डस्वर्थकी छोटी छोटी कविताओंका मरिणाम उसके चित्तपर कुछ विलक्षण ही हुआ । इस कविने जंगल, वन, नदी, पर्वत, सरोवर, पशु पक्षी, आदि स्वाभाविक वस्तुओंको लक्ष्य करके चित्तको उत्फुल्ल और तन्मय करनेवाली रचना की है । यदि उसने उक्त वस्तुओंका केवल स्वभाव-वर्णन ही किया होता तो उससे मिलको उतना लाभ न होता । उसकी कविताओंमें एक विशेषता है । वह यह कि पदार्थसौन्दर्यका शारीरिक और मानसिक दृष्टिसे निरीक्षण करनेसे मानसिक वृत्तिमें जो उमंगें और विकारनिश्रित विचारों की तरंगें उठती हैं उनका वास्तविक चित्र भी उनमें खींचा गया है । यह चित्र मिलकी मानसिक व्याधिक लिये रामबाण ओषधि हो गया और इससे उसे धीरे धीरे आन्तरिक सुख, मानसिक आह्लाद आदि सुखके साधनोंका स्वाद आने लगा। उसके ध्यानमें यह बात भी आ गई कि यदि यह कल्पना कर ली जाय कि संसारका सुधार एक दिन पूर्णताको प्राप्त हो जायगा, तो भी मेरे सुखके दूसरे साधन बने रहेंगे । और, इस तरह, जिन प्रश्नोत्तरोंसे उसके हाथ पैर ठंडे हो गये थे-उत्साह नष्ट हो गया था, उनका गोरखधंधा सुलझ गया । विचार-परिवर्तन । जिस घटनाका ऊपर वर्णन किया गया है, उससे मिलके विचारों में बहुत कुछ परिवर्तन होने लगा । उसके बहुतसे. निश्चय शिथिल

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