Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 26
________________ २२ प्रकारसे कुछ चीज ही न समझा। उसको संस्कृत और परिष्कृत करनेकी ओर उन्होंने कुछ भी ध्यान न दिया। उसकी एक प्रकारसे अवहेलना ही की। इससे उनकी दृष्टिसे काव्यका महत्त्व उतर गया। इत. ना ही नहीं, किन्तु वे यह भी भूल गये कि काव्यकी बजिभूत जो कल्पनाशक्ति है उसको उन्नत और परिष्कृत करना मनुष्यके सुधारके लिये एक आवश्यक कार्य हैं । बेन्थाम स्वयं ही कहता था कि इधर उधरकी बातें मिलाकर सच्चेको झूठा और झूठेको सच्चा बतलाना ही काव्य है ! शास्त्रीयचर्चा और अध्ययन । इस तरह इधर तो मिलका निबन्ध-लेखन चल रहा था उधर उसने थोड़े ही दिन पीछे जर्मन भाषाके सीखनेका प्रारंभ कर दिया और साथ ही साथ शास्त्रीय विषयोंका अध्ययन करनेके लिये उसने और उसके दश बारह मित्रोंने एक नया ही ढंग निकाला । अर्थात् ऐतिहासिक पण्डित प्रोटकी कृपासे उन्हें एक स्वतंत्र कोठरी मिल गई। उसमें वे सब सवेरे ८॥ से १० बजे तक बैठने लगे । वहाँ वे एक एक शास्त्रीय ग्रन्थको लेकर पढ़ते थे और परस्पर वादविवाद तथा चर्चा करते थे। इस रीतिसे मिलने अपने पिताका बनाया हुआ अर्थशास्त्र, रिका?का बनाया हुआ इसी विषयका दूसरा ग्रन्थ और बेले साहेबका मूल्यविषयक ग्रन्थ-ये तीन अर्थशास्त्रके ग्रन्थ पढ़ डाले और उन्हें अच्छी तरहसे समझ लिया । इसके पश्चात् इस मंडलीने वेटले और हॉविसके तर्कग्रन्थोंका और फिर हर्टटेके आत्मशास्त्रका पारायण किया। इसके बाद यह सभा बन्द हो गई । परन्तु इतनेहीमें मिलके पिताने ' मनका पृथक्करण' नामक ग्रन्थ छपाकर प्रकाशित किया । इसलिये उसके

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