________________
मिलका ज्ञान और उसकी शिक्षापद्धति । जितनी थोड़ी उम्र में मिलने तर्कशास्त्र और अर्थशास्त्र आदि कठिन विषयोंका ज्ञान प्राप्त कर लिया, उतनी थोड़ी उम्रमें और लोगोंके लिये इस बातका होना प्रायः असंभव मालूम होता है। परन्तु पाठकोंको यह बात ध्यानमें रखनी चाहिये कि मिलका ज्ञान वैसा नहीं था जैसा कि हमारे यहाँकी शिक्षापद्धतिके अनुसार पढ़नेवालोंका होता है। उसने जो कुछ पढ़ा था उसका उसकी बुद्धिसे तादात्म्य हो गया था। उसका बोझा उसके दिमागपर बिलकुल नहीं पड़ा था । तोतेके सदृश रटना और रातदिन पुस्तकें घोख घोखकर दिमाग खाली करना, उसे कभी स्वप्नमें भी नहीं बतलाया गया था । वह प्रत्येक विषयको समझता था, उसका मनन करता था और तर्क वितर्क करके निर्णय करता था; पर कभी रटता नहीं था । इसीसे वह थोड़ी उम्रमें बहुत पढ़ गया और आगे इतना बड़ा तत्त्ववेत्ता और ग्रन्थकर्ता हुआ । यदि उसका पिता उसकी शिक्षापर इतना ध्यान न देता तो कभी संभव न था कि मिल ऐसा नामी विद्वान् होता ही । वास्तवमें उसे उसके पिताने ही विद्वान् बनाया।
जेम्सकी सावधानता। मेरे पुत्रके कोई विचार भ्रमात्मक न हो जावें, वह अभिमानी न हो जाय, इत्यादि बातोंकी ओर जेम्सका बहुत लक्ष्य रहता था। एकदिन मिल किसी विषयका प्रतिपादन कर रहा था। उसमें उसने एक जगह कहा कि, " यद्यपि अमुक सिद्धान्त तत्त्वत: ठीक है-परन्तु व्यवहारमें लाते समय उसमें थोड़ा बहुत अन्तर अवश्य करना चाहिये । " यह सुनकर जेम्स बहुत ही अप्रसन्न हुआ। वह इस