Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit Author(s): Nathuram Premi Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 7
________________ परवा न करता था और अपने ग्रन्थों तथा लेखोंमें अपने विचारोंको खूब स्पष्टताके साथ प्रकट करता था । इस स्पष्टवादिताके कारण उसे कभी किसी बड़े आदमीसे सहायता नहीं मिली। तो भी वह विचलित नहीं हुआ और अपना कुटुम्बपोषण, बच्चोंको पढ़ाना लिखाना और ग्रन्थकर्तृत्व ये तीनों ही कार्य बराबर करता रहा। इससे वह कितना दृढनिश्चयी था इस बातका पता लगता है । मिलकी गृहशिक्षाका प्रारंभ । जॉन स्टुअर्ट मिलको उसके पिता जेम्स मिलने किसी स्कूल या कालेजमें पढ़नेके लिये नहीं भेजा । उसने उसे खुद ही पढ़ाना शुरू किया। तीन वर्षकी अवस्थामें ही पिता अपने होनहार पुत्रको ग्रीक भाषा सिखाने लगा। लगभग पाँच वर्षमें उसने उसे उक्त भाषाके बहुतसे गद्यग्रन्थ पढ़ा दिये । बाप पढ़ता जाता था और जहाँ पुत्रकी समझमें नहीं आता था वहाँ अच्छी तरहसे समझा देता था । आठवें वर्ष मिलने लैटिन भाषाका पढ़ना प्रारंभ कर दिया और इसी समय बाप उसे अंकगणित भी सिखलाने लगा । यद्यपि मिलका जी अंकगणितमें बिलकुल न लगता था, तो भी पिताके कठोर शासनके कारण उसे वह चुपचाप सीखना पड़ता था। टहलना और शिक्षा । जबतक चलने फिरनेमें खूब व्यायाम न हो जाता था, तबतक जेम्स मिलको अन्न नहीं पचता था। इस कारण वह हर रोज सबेरे शाम टहलने जाया करता था और साथमें अपने पुत्रको भी ले जाता था । इस समय मार्गमें वह उन विषयोंपर व्याख्यान देता जाता था जिनके समझनेकी पुत्रमें योग्यता हो गई थी। मौके मौकेपर वह ऐसेPage Navigation
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