Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 11
________________ खेलना कूदना। मिलको अपनी हमजोलीके लड़कोंके साथ खेलना कूदना कभी नसीब नहीं हुआ । उसने अपने ' आत्मचरित्र ' में एक जगह स्वयं लिखा है कि मैंने एक दिन भी क्रिकेट नहीं खेला। लड़कपनमें यद्यपि वह बहुत मोटा ताजा और सशक्त नहीं था, तथापि इतना दुर्बल और अशक्त भी न था कि उसके लिखने पढ़नेमें बाधा आती। गहन विषयोंकी शिक्षा । __ जब मिल तेरह वर्षका हुआ तब उसके पिताने उसे गहन विषयोंकी शिक्षा देना आरंभ किया । सबसे पहले तर्कशास्त्र शुरू किया गया । जब जेम्स टहलनेको जाता था तब वह यह जाननेके लिये कि लड़केने पहले दिनके पढ़े हुए पाठका कितना अभिप्राय समझा है, लौट फेरकर प्रश्न किया करता था। इसके सिवा वह लड़केके जीमें प्रत्येक पठित विषयका उपयोग भी अच्छी तरहसे धंसा देता था। उसका यह मत था कि जिस चीजका उपयोग मालम नहीं उसका पढ़ना ही निरर्थक है । यद्यपि यह बात नहीं थी कि जिन गहन विषयोंको वह समझाता था वे सबके सब लड़केकी समझमें आ जाते थे, तो भी उससे लाभ बहुत होता था । क्योंकि उस समय मिलने तर्कशास्त्रके कई ग्रन्थ पढ़ डाले थे और इससे वह इतना योग्य हो गया था कि चाहे जैसी प्रमाणशृंखला हो उसके दोषोंको विना भूले ढूँढ़ निकालता था। तर्कशास्त्रका महत्त्व मिलके जीमें इतना गहरा पैठ गया कि वह उसे बालकोंकी बुद्धिको संस्कृत करनेके लिये गणितसे भी अधिक मूल्यवान् समझने लगा। वह कहा करता था कि, बहुतसे तत्त्ववेत्ताओंमें यह बड़ी कमी होती है कि वे दूसरोंकी कोटिके दोष नहीं निकाल सकते हैं । इससे वे केवल अपने पक्षकी ही रक्षा

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