Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 10
________________ विविध ग्रन्थोंका अध्ययन। लैटिनकी शिक्षा शुरू होनेपर भूमिति और फिर कुछ दिनोंके बाद बीजगणितकी शिक्षा मिलको दी जाने लगी । बारह वर्षकी उम्रमें उसे ग्रीक और लैटिनका अच्छा ज्ञान हो गया। इन भाषाओंके उसने प्रायः सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध ग्रन्थ पढ़ डाले । अरिस्टाटलके (अरस्तूके) अलंकारशास्त्रका तो उसने बहुत ही विचारपूर्वक अध्ययन किया । जेम्स अपने इस तीव्रबुद्धि बालकसे उक्त ग्रन्थोंका सार प्रायः प्रतिदिन सुना करता था और देखता था कि इसकी पदार्थग्राहिणी शक्ति कितनी बढ़ी हुई है । ऐतिहासिक ग्रन्थोंका पढ़ना भी इस समय मिलने नहीं छोड़ा था। वह उन्हें पढ़ता था और उनके सारांशके आधारपर मनोविनोदके लिये एक छोटेसे इतिहासकी रचना भी करता था। जब उसने पोपके. इलियड काव्यका अनुवाद पढ़ा, तब एक छोटासा काव्य बनानेकी उसकी भी इच्छा हुई । पिताने उसकी इस इच्छाका अनुमोदन किया और वह उत्साहित होकर थोड़ी बहुत कविता करने लगा । यद्यपि इस कार्यमें मिलको बहुत सफलता प्राप्त नहीं हुई, तो भी इतना लाभ उसे अवश्य हुआ कि हृदयके भावोंको प्रकट करनेवाले समुचित शब्दोंको योग्य स्थानमें बिठानेकी शैली उसे आगई और आगे इससे उसे बहुत लाभ हुआ। इसके बाद उसने शेक्सपियर, मिल्टन, स्पेन्सर, गोल्डस्मिथ, डायडन, स्कॉट आदि अँगरेजी कवियोंके बहुतसे काव्य पढ़ डाले । इनमेंसे स्कॉट कविके काव्य उसे बहुत ही अच्छे लगते थे । इतना सब पढ़ते रहनेपर भी मिलको सन्तोष नहीं था । दिल बहलानेके लिये उक्त ग्रन्थोंके सिवाय पदार्थविज्ञान-सम्बन्धी ग्रन्थों को भी वह अकसर पढ़ा करता था । विद्याव्यासंग इसीका नाम है।

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