________________
*
*
**
है मेरु हैं, प्रत्येक मेरुके दोनों तरफ अर्थात् उत्तर तथा दक्षिणकी ओर १ हैमवंत, २ ऐरण्यवंत, ३ हरिवर्ष, ४ रम्मय, ५ ।
देवकुरु और ६ उत्तरकुरु, इन नामोंकी छह छह भूमियाँ हैं, इन छह भूमियोंको पाँच मेरुओंसे गुणनेपर तीस संख्या ६ होती है. अन्तद्वीपमें पैदा होनेवाले मनुष्य अन्तद्वीपनिवासी कहलाते हैं, अन्तद्वीपोंकी संख्या छप्पन है, वह इस * प्रकार-भरतक्षेत्रसे उत्तर दिशामें हिमवान् नामक पर्वत है, वह पूर्व दिशामें तथा पश्चिम दिशामें लवणसमुद्रतक लम्बा
है, इसकी पूर्व तथा पश्चिममें ईशानादिविशिमें दो दो दंष्ट्राकार भूमियाँ समुद्रके भीतर हैं, इस तरह पूर्व तथा पश्चिमकी विचार दंष्ट्रायें हुई इसी प्रकार ऐवतक्षेत्रसे उत्तर, शिखरी नामक पर्वत है, वह भी पूर्व तथा पश्चिममें समुद्र तक
लम्बा है और दोनों दिशाओंमें दो दो दंष्टाकार भूमियाँ समुद्र के अन्दर घुसी हैं, दोनोंकी आठ द्ष्ट्रायें हुई, हर एक 15ष्ट्रामें सात सात अन्तद्वीप हैं, सातको आठसे गुणनेपर छप्पन संख्या हुई.
विशेष-कर्मभूमि, अकर्मभूमि और अन्तद्वीप, ये सब ढाई द्वीपमें हैं. जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्करवरदीपका आधा भाग, इनको ढाई द्वीप कहते हैं. इस ढाई द्वीपमें ही मनुष्य पेदा होते हैं तथा मरते हैं, इसलिये इसको मनुष्यक्षेत्र' कहते हैं, इसका परिमाण पैंतालीस लाख योजन है. अकर्मभूमि और अन्तीपमें जो मनुष्य रहते हैं,
उन्हें 'युगलिया' कहते हैं, इसका कारण यह है कि स्त्री-पुरुषका युग्म-जोड़ा-साथ ही पेदा होता है और उनका वैवाI हिक सम्बन्ध भी परस्पर ही होता है. इनकी ऊँचाई आठसौ धनुषकी, और आयु, पल्योपमका असंख्यातवा भाग । जितनी है. पन्दरह कर्मभूमियाँ, तीस अकर्मभूमियाँ और छप्पन अन्तर्वीप, इन सबको मिलानेसे एकसौ एक मनुष्य-181
HTAK SAARCARE
******