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नवतत्त्व-
भाषाटी
सार्थ
कासहित.
॥२१॥
SARAKAR
पणिंदियतिबलूसा-साऊदसपाणचउछसगअट्ठ । इगदुतिचउरिंदीणं असन्निसन्नीणनवदसय ॥७॥
(पणिंदिय) पाँच इंद्रियों (तिबल) मनादि तीन बल (उसास) स्वासोवास (आऊ) आयु (दस) ऐसे दस (पाण) प्राण है (चर) स्पर्शनेंद्रिय कायबल स्वासोवास और आयु ऐसे चार (छ) पूर्वका चारकी साथ रसना और वचन ऐसे छे (सग) पूर्वका छेकी साथ नासीका ऐसे सात, (अ) आठ प्राण, पूर्वका सातकी साथ चक्षु (इग) एकेंद्रिको पूर्वका चार (दु) बेइंद्रीको पूर्वका छे (ति) तेइंद्रिको पूर्वका सात (चरिंदीणं) चौरिंद्रीको पूर्वका आठ (असन्नि) असंनी पंचेंद्रिको (सन्नीणं) और संनी पंचेन्द्रिको (नवदसय) अनुक्रमसें नव और दश प्राण जान लेना जैसेकी पूर्वका आठकी साथ श्रोत मिलानेसें नव और नवकी साथ मन मिलानेसें दश । चार भावप्राण तो सबकाही समान है॥७॥ इति जीवतत्त्वम् ॥ धम्माऽधम्माऽगासा तियतियभेयातहेवअद्धाय । खंधादेसपएसा परमाणुअजीवचउदसहा ॥ ८॥
(धम्मा) धर्मास्तिकाय (अधम्मा) अधर्मास्तिकाय (आगासा) और आकाशास्तिकाय (तियतिय) प्रत्येक प्रत्येकका खंधादि तीन तीन (भेया) भेद है ऐसे नव (तहेव) तेसेही (अद्धाय) कालका एक भेद इस प्रकारसे पूर्वका नव और कालका १ सब मिलकर दश हुआ सो अरूपी है (खंधा) और खंध (देस) देश (पएसा) प्रदेश (परमाणु) परमाणु यह चार पुद्गलका रूपी कहा (अजीव) रूपी अरूपी दोनु मिलकर अजीवका (चउदसहा) चौदह भेद है ॥८॥
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