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प्रकरणम्
आगमसार
॥६३॥
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क्रिया अनुष्ठान करे सूजतो आहारलीये पण ज्ञानध्याननो जेवो उपयोग जोइये तेवो उपयोग न होय ते द्रव्यसाधु जे |भाव संवरमोक्षनो साधक थइ भाव साधुनी करणी करे ते भाव निक्षेपे साधु कहिये. ___ कोइकनो अरिहंत नाम छे ते नाम अरिहंत अने अरिहंतनी प्रतिमा ते थापना अरिहंत जेटलासुधी छद्मस्थ अवस्था ते द्रव्य अरिहंत अने केवलज्ञान पाम्या पछे लोकालोकनो भाव जाणे देखे ते भाव अरिहंत एम सिद्धमां पण कहेवो. __ कोइ जीवनो ज्ञान एहवो नाम अथवा भावें अजीवनो नाम ते नामज्ञान तथा जे ज्ञान पुस्तकमां लख्यु छे ते स्थापनाज्ञान जे उपयोग विना सिद्धांतनो भणवो अथवा अन्यमतिना सर्वशास्त्र भणवा तथा ज्ञशरीरादिक ते सर्व द्रव्यज्ञान जे नवतत्वनुं जाणवू ते भावज्ञान. __ तथा कोइकर्नु तप एहवं नाम ते नामतप तथा पुस्तकमां तपनी विधीनुं लखन ते थापनातप अने पुण्यरूप मासखमणादिक करवो ते द्रव्यतप जे परवस्तु ऊपर त्यागनो परिणाम ते भावतप एम संघरादिक सर्वमां चार चार निक्षेपा जाणवा तथा श्रीअनुयोगद्वार मध्ये कडुं छे-यतः "जत्थ य जं जाणिज्जा निक्खेवं निख्खिवे निरवसेसं ॥ जत्थविय न जाणेजा चउक्वगं निक्खिवे तत्थ ॥१॥ए चार निक्षेपा कह्या एटले शब्द नय कह्यो. __ हवे छट्टो समभिरूढ नय कहे छे जे वस्तुना केटलाक गुण प्रगट्या छे अने केटलाक गुण प्रगट्या नथी पण अवश्य प्रगटशे एहवी वस्तुने वस्तु कहे ते वस्तुना नामांतर एक करी जाणे जेम जीव चेतन तथा आत्मा एहनो एक अर्थ
ANSARGAMARANASIK