Book Title: Jivvicharadi Prakaran Sangraha
Author(s): Jinduttasuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttasuri Gyanbhandar

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Page 292
________________ नयचक्रसार मूळ बालावबोधसहित ॥१४२॥ कहेवाना अधिकारी छे ए नयनुं किहां एक अर्थनय ए पण नाम छे ते अर्थ शब्दे द्रव्य लेवु तथा शब्दादिक त्रण नय ते शुद्ध नय छे केमके शब्दना अर्थनी एने मुख्यता छे पेहेला नय ते भेदपणे वचनने वांछे छे अने शब्दादिक नय ते लिंगादिके अभेद वचने अभेद कहे तथा भिन्न वचने भिन्नार्थ कही माने अने समभिरूढ ते भिन्न शब्द तेने वस्तु पर्याय न माने तथा एवंभूत ते भिन्नगोचर पर्यायने भिन्न माने जे चेष्टाकरतो होय तेने घट कहे पण खूणे पड्यो घट कहे नही चित्राम करतो होय तथा तेज उपयोगें वर्ततो होय तेने चित्रकार कहे पण तेज चित्रकार सुतो होय अथवा खावा बेठो होय तेने चित्रकार न कहे केमके ते उपयोगें रहित छे माटे ए नय ते शब्द तथा अर्थने अभेदपणो माने छे अने अर्थथी शून्य शब्द ते प्रमाण नथी अने शब्द प्रधान अर्थ ते द्रव्यने गौणपणे वर्तता शब्दादिक त्रण नय छे एम तत्त्वार्थ टीका मध्ये कह्यो छे. ए सात नयने विषे पेहेलो नैगमनय ते सामान्य विशेष बेहुने माने छे संग्रहनय ते सामान्यने माने छे व्यवहारनय विशेषने माने छे अने द्रव्यार्थावलंबी छे तथा ऋजुसूत्र तो विशेष ग्राहक छे ए चार ते द्रव्यनय छे अने पाछला शब्दादिक त्रण नय ते पर्यायार्थिक विशेषावलंबी भावनय छे तथा शब्दादिक नय ते नाम स्थापना द्रव्य ए पेहेला त्रण निक्षेपाने अवस्तु माने छे “तिण्हं सद्दनयाणं अवत्थु” ए अनुयोगद्वार सूत्रनुं वचन छे ए साते नय परस्पर सापेक्षपणे ग्रहे ते समकेति जाणवा अने जो ए नय परस्पर विरोधी होय तो मिथ्यात्वी जाणवा तथा एकेका नयना सो सो भेद थाय छे एम साते नयना मळी सातसो भेद थाय छे ए अधिकार श्रीअनुयोगद्वार सूत्रथी कह्यो छे. ॥१४२॥

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