Book Title: Jivvicharadi Prakaran Sangraha
Author(s): Jinduttasuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttasuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 297
________________ ||ज्ञान तेने प्रमाण कहियें. तेना मूल भेद बे छे, एक प्रत्यक्ष बीजो परोक्ष. तिहां स्पष्ट ज्ञान ते प्रत्यक्ष कहिये तेथी इतर के. बीजो जे अस्पष्ट ज्ञान ते परोक्ष कहिये. अथवा आत्माना उपयोगथी इंद्रियनी प्रवृत्ति विना जे ज्ञान ते प्रत्यक्ष | कहिये. तेना बे भेद छे. एक देशप्रत्यक्ष बीजो सर्वप्रत्यक्ष. तेमां अवधिज्ञान तथा मनःपर्यवज्ञान ते देशप्रत्यक्ष छे. केमके अवधिज्ञान एक पुद्गल परमाणुने द्रव्य तथा क्षेत्रे अने कालें तथा भावें केटलाक पर्यायने देखे. तथा मनःपर्यवज्ञानी दमनना पर्यायने प्रत्यक्ष जाणे पण बीजा द्रव्यने न जाणे माटे बेहु ज्ञानने देशप्रत्यक्ष कहिये. कारण के देशथी वस्तुने जाणे पण सर्वथी न जाणे माटे, अने केवलज्ञान ते जीव तथा अजीव रूपी तथा अरूपी सर्व लोकालोकना त्रण कालना सर्व भावने प्रत्यक्षपणे जाणे माटे सर्व प्रत्यक्ष कहियें. है तथा मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान ए बे अस्पष्ट ज्ञान छे माटे परोक्षछे ते परोक्ष प्रमाणना चार भेद छे. १ अनुमान | प्रमाण, २ सपमान प्रमाण, ३ आगम प्रमाण, ४ अर्थापत्ति प्रमाण. तिहां चिन्हे करीने जे पदार्थने ओलखवु तेने लिंग कहिये. ते परामर्श के० संभालवाथी जे ज्ञान थाय तेने अनुमानज्ञान कहिये. लिंग ते जे विना ते वस्तु होयज नही ते वस्तुनुं लिंग जाणवू. ते लिंगने देखवाथी वस्तुनो निर्धार करवो ते अनुमान प्रमाण जाणवो. जेम गिरि गुहिरने विषे आकाशावलंबी धूमनी रेखा देखीने अनुमान करे जे ए पर्वत अग्नि सहित छे ए पक्ष तथा | साध्य कह्यो. जे पक्ष ते पर्वत, अने साध्य ते अग्निवंतपणो, साधवो ते हेतु जे धूम्रवंतपणा माटे एटले जिहां धूच होय जीववि. २५/ तिहां अग्नि अवश्य होयज. आकाशने पहोंचती जे धूम रेखा ते अग्नि विना होय नही तिहां दृष्टांत कहे छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306