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जे मूल स्वभाव पलटे नही ते अप्रच्युति नित्यता कहिये अने ए नित्यतामा जे ऊर्ध्व प्रचय कह्यो ते ओलखावे छे जे पहेले समयें द्रव्यनी परिणति हती ते बीजे समयें नवापर्यायने उपजवे अने पूर्वपर्यायने व्यये सर्व पर्यायनी परावृति थइ । तो पण ए द्रव्य तेनुं तेज एवं जे ज्ञान थाय ते द्रव्यमां उर्ध्वप्रचय कहियें उपरले समये ते माटे उर्ध्व प्रचय कहिये. | तथा अनंताजीव सरिखा छे सर्वभिन्नभिन्न छे पण सर्वजीव जाणताए पण जीव एवो जीवत्वसत्तायेंतुल्य भिन्न जीव
सत्तारूप ज्ञान थाय ते तिर्यक्प्रचय कहिये. ___ ऊर्ध्वप्रचय ते समयांतरे अनेक उत्पादव्ययने पलटवे पण ए जीव ते तेज छे एवं ज्ञान थाय ए नित्यस्वभावनो धर्म जाणवो. ए कारणथी कार्यउपनो तेनुं ज्ञान थाय ते नित्यस्वभावनो धर्म जाणवो. तथा ए कारणथी जे कार्यउपनो वली ज्ञान थयुं ते कारणथी बीजे कारणे बीजुं कार्य थाय एम नवे नवे कार्यउपने पण जीव तेज छे एवं जे ज्ञान थाय, परंपरारूप संतति चाली जाय ते पारंपर्य नित्यता कहिये जेम प्रथम शरीरने कारणे राग हतो तेहिज वस्त्र धनने कारण प्रते राग थयो ते कारण नवा रागनो नवापणो पण राग रहित आत्मा केवारे नही, ए पारंपर्य एटले परंपरा नित्यता: कहियें. बीजु नाम संतति नित्यता जाणवी, ते कारण योगे निमित्तें नीपजे, नवा नवा पर्यायने परिणमवे एटले पूर्व
पर्यायने व्ययथवे तथा अभिनव पर्यायने उपजवे अनित्य स्वभाव जाणवो. एटले उत्पत्ति के० उपजवो व्यय के 3 विणसवो एवो जे स्वभाव ते अनित्य स्वभाव जाणवो.
तत्र नित्यत्वं द्विविधं कूटस्थं प्रदेशादिनां, परिणामित्वं ज्ञानादिगुणानां, तत्रोत्पादव्ययावने